अहिंसा किसे कहते है?

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शंका

कभी-कभी देखा जाता है कि श्रावक जिसको अहिंसा मान रहा है वो हिंसा की श्रेणी में आ जाता है, तो अहिंसा की परिभाषा क्या है?

समाधान

हिंसा दो प्रकार की होती है- द्रव्य हिंसा और भाव हिंसा। केवल हिंसा और अहिंसा का सम्बन्ध जीवों के वधावध तक सीमित नहीं है। हिंसा और अहिंसा का सम्बन्ध हमारे भावों से है। चार प्रकार के भंग बताए हैं; एक में द्रव्य हिंसा, भाव हिंसा दोनों हो, एक में द्रव्य हिंसा हो भाव हिंसा न हो, एक में भाव हिंसा हो द्रव्य हिंसा न हो; और चौथा भंग है जिसमें न द्रव्य हिंसा हो न भाव हिंसा हो। द्रव्य हिंसा, भाव हिंसा दोनों हो- किसी ने किसी को गोली मारी, सामने वाला मर गया, यह द्रव्य हिंसा और भाव हिंसा दोनों हुई। दूसरे में भाव हिंसा हो द्रव्य हिंसा न हो, आपने गोली मारी वह बाजू से निकल गई, सामने वाला बच गया, आपने गोली मार दी वह बचा वह भाव हिंसा हुई, द्रव्य हिंसा नहीं हुई। तीसरा द्रव्य हिंसा होना, भाव हिंसा न होना; आप सड़क पर चल रहे हैं, देखते हुए चल रहे हैं, पाँव के नीचे अचानक कोई कीड़ा उड़कर आ गया, दबकर मर गया, द्रव्य हिंसा हुई। पर आपका भाव नहीं था, आप में जागरूकता थी, इसलिए भाव हिंसा नहीं हुई। डॉक्टर ने एक ऑपरेशन किया पूरे लगन निष्ठा के साथ, एकदम तत्परता से, ऑपरेशन फेल हो गया, मरीज मर गया-द्रव्य हिंसा हुई, भाव हिंसा नहीं हुई। सावधानी से हम प्रवृत्ति करें जिसमें न द्रव्य हिंसा हो, न भाव हिंसा हो। चौथा भंग तो अति उत्तम है। तीसरा भंग जिसमें द्रव्य हिंसा हो, भाव हिंसा न हो वह भी चलेगा लेकिन जब द्रव्य हिंसा और भाव हिंसा दोनों हो, वह हिंसा है। भाव हिंसा हो और द्रव्य हिंसा न हो, वो भी हिंसा है। वस्तुतः हिंसा का सम्बन्ध हमारे भावों से है। अतः अपने भाव में पवित्रता रखनी चाहिए। ईर्ष्या, राग द्वेष, वैमनस्य के भाव भी एक प्रकार की हिंसा है, इनसे हमें बचना चाहिए।

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