ब्रह्मचर्य क्या है, विवाहित लोग इसका पालन कैसे कर सकते हैं?

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शंका

ब्रह्मचर्य क्या है, विवाहित लोग इसका पालन कैसे कर सकते हैं?

समाधान

जैन दर्शन में ब्रह्मचर्य को बहुत ही उच्च स्तर पर व्याख्यायित किया गया है। प्राय: अविवाहित रहने को ब्रह्मचर्य माना जाता है। अविवाहित व्यक्ति ब्रह्मचर्य से रह सकता है लेकिन अविवाहित रहना ही ब्रह्मचर्य नहीं और मात्र विवाहित हो जाना अब्रह्म नहीं! जैन धर्म में गृहस्थ को भी ब्रह्मचारी कहा गया है। पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन अखंड ब्रह्मचारी का होता है लेकिन स्त्री-पुरुषों का एक दूसरे से दूर रहना ही ब्रह्मचर्य नहीं है।

ब्रह्मचर्य क्या है:-

“मल योनिं मल बीजं, गलन मलनं पूति गन्ध वीभत्स

पस्या मग्न मनंगात, ब्रह्मति यो ब्रह्मचारी”

अर्थात:- जो शरीर को मल की योनि, मल का बीज, अपवित्र, गन्ध युक्त और वीभत्स जैसे देखते हुये, शरीर के अशुचिमय स्वरुप को देखते हुये, जो देह से विरत होकर, काम से विरत होता है वह ब्रह्मचारी है। देह से दूर होना, निज-पर के देहाकर्षण से मुक्त होना ही ब्रह्मचर्य है। आगे बढ़ने पर ब्रह्मा यानी आत्मा में रम जाना ही ब्रह्मचर्य, तो पूर्ण ब्रह्मचर्य आत्म रमण की स्थिति है।

गृहस्थों के विषय में मैंने कहा विवाह करने का अर्थ अब्रह्मचारी नहीं हैं। जैन धर्म में एक गृहस्थ भी यौन सदाचार का पालन करता है। विवाह के उपरान्त स्त्री-पुरुष एक दूसरे तक ही सीमित रहते हैं तो उन्हें भी ब्रह्मचारी की संज्ञा दी गयी है, वो ब्रह्मचर्यानुव्रती हैं। वो उस अनुरुप ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए अपने जीवन को आगे बढ़ा सकते है। 

क्रमश: हम ब्रह्मचर्य की साधना करें, सभी साधनाओं में ब्रह्मचर्य को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। ब्रह्मचर्य से हमारी आत्मा की शक्ति का विकास होता है, हमारी क्षमतायें बढ़ती हैं। ब्रह्मचर्य हमारी चेतना के ऊर्ध्वारोहण में सहायक है। इसलिए ब्रह्मचर्य को व्यापक सन्दर्भ में समझ कर अपनायें।

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