पहले जब आपस में, सगे-संबंधियों को या दूसरों को ‘जय जिनेन्द्र’ किया जाता था तो चरण स्पर्श के साथ किया जाता था, आजकल जय जिनेन्द्र बोल कर किया जाता है?
जय जिनेन्द्र है क्या?- इसको संक्षिप्त में समझ लें। मेरे पास बहुत पहले, सम्मेद शिखरजी में, प्रश्न आया था। “हम एक दूसरे को ‘जय जिनेन्द्र!’ बोलते हैं- ‘जिनेन्द्र की जय हो’, इसका तात्पर्य क्या है?” इसका तात्पर्य केवल यह – “हम और तुम साधर्मी भाई हैं। हम एक धर्म के अनुयायी हैं, हम एक धर्म के अनुरागी, हम एक धर्म का, एक मत का आलम्बन लेने वाले हैं, हम जिनेन्द्र भगवान के पद के अनुगामी हैं इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ ‘जय जिनेंद्र’, तुम भी कहो ‘जय जिनेंद्र!’”
अब रहा सवाल बड़े और छोटे का!- जय जिनेन्द्र करने से कर्मों का क्षय होता है। अगर आपको कोई ‘जय जिनेन्द्र’ कहे तो आपको ‘जय जिनेन्द्र!’ कहने में कोई बुराई नहीं सोचनी चाहिये। ये सोचना चाहिए कि सामने वाले ने ‘जय जिनेन्द्र!’ बोलकर भगवान का नाम लेने का अवसर दिया है। वो आपको ‘जय जिनेन्द्र!’ बोले तो आप भी ‘जय जिनेन्द्र!’ बोल सकते हैं। यदि आप सोचें “सिर्फ बोलने पर हम आशीष क्यों दें?” आशीष तो भाव से निकलता है, शब्दों से नहीं। छोटे हो या बड़े, यदि ‘जय जिनेन्द्र!’ बोलते हैं तो कोई दोष नहीं है बल्कि इससे आपको जिनधर्म का अनुयायी होने का एक प्रतीक मिलता है और बच्चों के मन में जैन धर्म के प्रति अनुराग होता है। इसलिए बड़ों को धोंक (चरण स्पर्श) करें लेकिन ‘जय जिनेन्द्र!’ जरूर बोलें। इसमें कोई एतराज मत करना। लेकिन यदि ‘जय जिनेन्द्र!’ कोई छोटे-बड़े से करते हैं तो दोष नहीं गुण ही समझो।
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