जीवाणी क्या है और क्यों डाली जाती है?
जैन धर्म के अनुसार जल में जीव है। हम पानी छानते हैं जिससे वह जीव बच जाये। हम जल को उसके स्रोत से निकालकर उससे पानी छानकर के छन्ने में बचे हुए पानी (बिलछानी), जिसे हम जीवाणी कहते हैं, उसमें हम वापस छना हुआ पानी मिलाकर जीव को जल के मूल स्रोत तक पहुँचा देते हैं ताकि उनका संरक्षण हो।
जीवाणी एक प्रकार से जीव दया की मौलिक क्रिया है। जो जीव दया की ऐसी क्रिया का पालन करना चाहते हों, उन्हें जीवाणी करना चाहिए। ये जैन धर्म का मूल है। बिना जीवाणी की क्रिया के भगवान का अभिषेक करना भी उचित नहीं है। जो लोग मोटर से पानी खींच करके इस तरह का कार्य करते हैं उसमें जीवाणी नहीं होती, वो अंहिसा के अनुपालन से युक्त जल शुद्ध जल नहीं है। इसलिए मन्दिरों में अहिंसा जीवाणी यन्त्र लगाकर आप भगवान का अभिषेक कीजिए। पर शहरों में कई जगह बोरिंग पर बैन है, तो उनके लिए एक अच्छा तरीका है, वर्षा के जल का अमृत कुंड बना लीजिये और वर्षा के जल को संग्रहीत करके जल को वहीं डालिए। जीवाणी का प्रयोग करके भगवान का शुद्ध जल से अभिषेक कीजिये। मोटर के द्वारा पानी खींचकर अभिषेक करना आगमनाकूल नहीं है। हमें इस पर बहुत सावधान रहना चाहिए और उस पर ध्यान देना चाहिए।
जीवाणी का पूरी तरह पालन करना चाहिए। मुझे बताया गया कि नियम सागर जी महाराज ने एक बहुत अच्छा जीवाणी बकेट (बाल्टी) डिजाइन किया है जो बहुत सुंदर है। उसे भी एक दिन लोगों के बीच दिखाना चाहिए। ये अद्भुत चीज है जिसे अभी किसी ने नहीं देखा। एक बूँद पानी भी बर्बाद नहीं होगा और आपको पानी छानने के बाद बिलछानी डालने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अपने आप बिलछानी हो जाएगी। उसका तो घर-घर में प्रचार होना चाहिए। मैं चाहूँगा कि शंका समाधान के माध्यम से उस पर एक कार्यक्रम बनाकर लोगों को दिखाया जाएँ ताकि लोगों में जागरूकता हो, वे अपनी मूलभूत धर्म की क्रिया को पाल सकें।
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