मन क्या है? इसे नियंत्रित कैसे करें

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शंका

मन क्या है? इसे नियंत्रित कैसे करें

समाधान

मन, जिसको हम अंतःस्करण कहते हैं, यह एक छठवी इंद्रिय है। इसे अनिंद्रिय कहते है। हमारी इन्द्रियाँ तो इंद्रिय हैं, क्योंकि उनका स्थान फिक्स है और विषय भी फिक्स है । मन का ना स्थान फिक्स है ना उसका विषय फिक्स है। इसलिए उसको अनिंद्रिय या अन्तःस्करण कहते हैं।हमारे भीतर के जितने भी संकल्प और विकल्प हैं उन सब का जन्मदाता है मन! सर्व संकल्प-विकल्पों को जन्म देने वाला मन है और यह मन हमेशा हमको उलझा करके रखता है। मन को नियंत्रित कैसे करें?

गौतम स्वामी ने एक बात कही –

मनोसाहसयोभीमो दुःथसोपरिधावही तस्याहं निग्गहं मन्ने धर्म सिख्खाहीकंथगे।

कि- “मन बड़ा दुष्ट और साहसी घोड़ा है जो प्रायः कुमार्ग की ओर भागता है। लेकिन मैं उस मन रूपी घोड़े का नियंत्रण धर्म-शिक्षा रूप लगाम के बल पर ही कर सकता हूँ।”

आप अपने मन को नियंत्रित करना चाहते हो, तो मन पर धर्म का अंकुश, धर्म शिक्षा का अंकुश रखो। आज मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि मन को नियंत्रित करने के दो उपाय हैं- एक सम्यक दिशा दर्शन और दूसरा प्रवाह परिवर्तन। मन को सही डायरेक्शन दीजिए। मन इधर-उधर भागे तो मन को समझाइए कि यह तेरे लिए उचित नहीं।

एक बार एक युवक मेरे पास आया, तब मैं विदिशा में था, गर्मी का समय था, तापमान (TEMPERATURE ) ४७-४८ चल रहा था। केशलौंच के बाद लगातार तीन दिन शुरुआत में ही अंतराय। गर्मी इतनी कि ४८-४७-४८ टेंपरेचर, विदिशा तो गर्मी के मामले में प्रसिद्ध है। वह युवक इंजीनियरिंग का छात्र था, उसने मुझसे पूछा कि “महाराज जी! आप का मन पानी पीने का नहीं होता? आप अपने मन को कैसे संभालते हैं?” प्रश्न तो आपके मन में भी आता होगा। लेकिन पूछने की हिम्मत नहीं कर पाते। मैं समझता हूँ कभी भी ऐसा प्रश्न आए तो पूछ लेना चाहिए। उसने बोला कि “महाराज जी, आपका मन पानी पीने का नहीं होता? आप अपने मन को कैसे संभालते हो? हम लोग तो रह नहीं सकते। दाएँ बाएँ कुछ कर लें।” मैंने कहा-“बस, यही अंतर है हम में और तुम में। हम जब जब आहार को निकलते हैं, तो शरीर के लिए निकलते हैं और उस समय मन को कहते कि देख तेरे लिए आज मैं लोगों के सामने हाथ पसार रहा हूँ। मेरे नियमों के अनुरूप जो मिलेगा वह मैं ग्रहण करूँगा, तेरे भाग्य में होगा उतना ही जाएगा; यह हमने मन को पहले से प्रशिक्षित कर रखा है। तुम को उतने में राजी होना होगा। और जिस घड़ी कोई हमारे चर्या के विरुद्ध तत्व, बाल आदि आते हैं उस समय यह नहीं लगता कि बाल क्यों आ गया? उस समय यह लगता है कि-‘तुरंत आहार को ब्रेक करो क्योंकि हमारे भोजन में अशुद्धि आ गयी और यह हमारे एषणा शुद्धि के विरुद्ध है। हमे इसे ग्रहण नहीं करना।’ उसी समय फिर हम अपने मन से कह देते कि देख आज तेरे भाग्य में कुछ नहीं है। अब जो होगा कल ही होगा, कल तक तुम्हें चुप बैठना होगा। और कल तक तुम कुछ कहोगे भी तो मैं संकल्प और प्रतिज्ञा से बंधा हुआ हूँ। तेरी ख़ातिर में अपनी प्रतिज्ञा तोड़ने वाला नहीं हूँ, तो मन अपने आप शांत हो जाता है।” देखो, बच्चे होते हैं, कुछ बच्चे ज़िद करते हैं, तो माँ उनकी तुरंत ज़िद पूरी कर देती है। जितनी ज़िद पूरी करोगे, बच्चे उतने जिद्दी होंगे। ज़िद पूरी करते ही, बच्चे जिद्दी हो जाते हैं। और जब बच्चों की ज़िद पूरी नहीं होती तो बच्चा भी देखता है ज़िद करने से कोई मतलब है नहीं, माँ सुनने वाली नहीं है। तो आप लोग क्या करते, अपने मन की ज़िद को पूरी करते हैं और हम लोग अपने मन की कभी चलने ही नहीं देते, उसकी ज़िद पूरी नहीं करते तो मन नियंत्रित होता है।

संकल्प, अभ्यास, वैराग्य- यह सब हमारे मन और इंद्रिय जय के बहुत श्रेष्ठ निमित्त है।

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