दो तीर्थंकरों के काल के बीच में धर्म विच्छेद से क्या तात्पर्य है?

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शंका

दो तीर्थंकरों के काल के बीच में धर्म विच्छेद से क्या तात्पर्य है?

समाधान

धर्म विच्छेद का मतलब जहाँ धर्म और धर्मात्मा दोनों का लोप हो जाना। मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका, चतुर्विध संघ का जब अभाव होता है तब धर्म का विच्छेद होता है। उस काल में ऐसा रहा होगा कि जब मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका कोई नहीं रहे होंगे। 

चतुर्थकाल में अराजकता नहीं फैलती। मनुष्य धर्म शून्य जरूर हुआ होगा, लेकिन पाखंड युक्त हुआ हो, ऐसा मुझे समझ में नहीं आता।

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