नवजात बच्चों का मुंडन की जो परम्परा रही है वह क्यों होता है? इसके पीछे कोई वैज्ञानिक कारण है या स्वास्थ्य का कारण है?
मुंडन संस्कार का विधान हमारे शास्त्रों में भी है और आदि पुराण में मुंडन के विषय में मैंने पढ़ा कि १२ वें माह में बच्चे का मुंडन करना चाहिए। कई लोग कहते हैं ‘१ साल के पहले मुंडन, ९ वें या १० वें महीने में कर लो, ऊन महीने में करो’, वर्ष पूर्ण होने पर १२ माह में मुंडन करने का विधान लिखा है। आप सब की जानकारी के लिए मैं बोल रहा हूँ कैसे कराएँ मुंडन? उसमें लिखा कि ‘पहले बच्चे के बाल को भगवान के गन्धोदक से धोएँ, उसके बाद बच्चे का मुंडन कराकर मुनियों से आशीर्वाद दिलाएँ।’ इसका मतलब मैंने यह समझा कि आप अपने बच्चे का १ साल में मुंडन कराएँ और जहाँ मुनि महाराज हो वहाँ करायें। ये मुंडन का विधान है।
अब रहा सवाल की मुंडन क्यों? निश्चित रूप से पेट से आने वाले जो बाल होते हैं, वह बाल बहुत बिखरे-बिखरे होते हैं, व्यवस्थित नहीं होते तो बाल एक बार साफ करने के बाद ढंग से बाल आते हैं। बाल साफ करने के लिए एक विधि बना दी गई, यह भी एक बड़ा कार्य है, तो उसको इस तरीके से बना दिया। १ साल का बच्चा हो ताकि उसके ऊपर उस्तरा आदि चले तो व्याकुलता न हो और १ साल के बाद बाल में अच्छे से ग्रोथ आ जाए। स्वास्थ्य सम्बन्धित भी कोई कारण हो सकता है पर अभी मेरा उस पर कोई विशेष ध्यान नहीं गया। लेकिन यह शास्त्र का विधान है और करने के परिणाम देखने को मिलते ही हैं। पहले करने से इंफेक्शन होता है, बालों को हटा भी देते हैं और बालों से हमारे शरीर के अन्दर बहुत सारी एनर्जी भी जाती है। होमियोपैथी में तो बहुत से चिकित्सक अपने किट में बाल को रख करके ट्रीटमेंट करते हैं। आप लंदन में हैं और आपका ट्रीटमेंट यहाँ से हो रहा है ऐसे भी बहुत सारे चिकित्सक हैं। तो कोई न कोई इससे सम्बन्ध रहा होगा जिसको आज हम ठीक ढंग से नहीं समझ पा रहे हैं लेकिन यह बड़ी व्यावहारिक और उपयोगी क्रिया है। इसको अपनाने में कोई दोष नहीं है अपितु अपनाना ही चाहिए।
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