अकाल मृत्यु किसे कहते हैं, और किसको आती है? पूर्व में ऐसा कौन सा काम होगा जिसकी वजह से वो होती है?
आगम में आयु कर्म के पीछे दो तरह की बात बताई गयी है। एक सोपक्रम आयु, दूसरी निरूपक्रम आयु। सोपक्रम आयु मतलब ऐसी आयु जो बीच में विनष्ट हो जाए, द्रुतगति से खपे। १०० वर्ष की आयु थी और १०० मिनट में खप जाए इसको बोलते हैं सोपक्रम आयु। दूसरी निरूपक्रम आयु जितना काल (period) लेकर आये हैं उस टाईम तक उसमें कोई छेड़छाड़ न हो सके। १०० वर्ष की है, तो १०० वर्ष में ही खपे। देव, नारकी, भोगभूमि के जीव और तीर्थंकर इनकी आयु को निरूपक्रम आयु बोलते हैं। इनकी आयु असमय में नष्ट नहीं होती, ऐसा शास्त्र का विधान है। और इसी में बताया गया कि बाकी सब की आयु सोपक्रम होती है। यानी निमित्त विशेष पड़ने से असमय में नष्ट हो सकती है। नष्ट हो ही ये कोई जरूरी भी नहीं है, किंतु हो सकती है। इसे बोलते हैं कि आयु कर्म का उदय होना। दूसरा शब्द है उदीरणा। उदय यानी अपने क्रम से उदय में आना और उदीरणा यानी ज़्यादा फर्क के साथ उदय में आना।
एक टंकी में नल लगा हुआ है, तो नल की टोंटी आप जितनी खोलोगे, पानी उतने ही मात्रा में आयेगा। लेकिन टोंटी निकाल के अलग कर दो तो क्या होगा? १ घंटे में खाली होने वाली टंकी १० मिनट में खाली हो जायेगी। यह उदीरणा है। जहाँ forcefully कर्म का उदय होता है, उसे कहते हैं सोपक्रम आयु और ये कुछ विशेष निमित्तों से होती है। आचार्य कुन्द कुन्द ने लिखा है कि,
विसवेयणरत्तक्खयभयसत्थग्गहणसंकिलेसाणं।
आहारुस्सासाणं णिरोहणा खिज्जए आऊ।। भाव पाहुड
फिर एक गाथा भी लिखी है,
गुरू चरण परण भंगेही अनेह प्रसंगेहि विविहेहि
अविमिच्य महा दुःख्खम् पत्तोसि अनंतोधीरो।
विष के भक्षण से, वेदना की अधिकता से, रक्त का क्षय होने से, भय वश, शस्त्र के आघात से, आहार के निरोध से, श्वास के निरोध से, पर्वत पर चढ़ने व उतरने से, अनीति अन्याय आदि से आयु कर्म की असमय में उदीरणा होती है, और आचार्य कुन्दकुन्द ने कहा कि ‘इन निमित्तों से ही तूने अनन्तों बार अपमृत्यु के महादुःख को भोगा है।’ तो ये सोपक्रम आयु जिनकी होती है उनकी आयु असमय में नष्ट होती है।
धवला जी की दसवीं पुस्तक में ऐसा लिखा है कि, एक जीव कर्म भूमि के मनुष्य की उत्कृष्ट आयु लेकर जन्मा एक करोड़ पूर्व वर्ष। एक करोड़ पूर्व वर्ष किसको बोलते हैं पता है? ८४ लाख वर्ष का एक पूर्वांग होता है और ८४ लाख वर्ष को ८४ लाख से गुणा करने पर पूर्व होता है। उसको एक करोड़ से गुणा करो तो एक कोटि पूर्व होता है या एक पूर्व कोटि होती है। एक पूर्व कोटि यानी ८४ लाख x ८४ लाख x १ करोड़ वर्ष = एक पूर्व कोटि। इतनी आयु लेकर आने वाला व्यक्ति एक अन्तर्मुहूर्त में मर सकता है। धवला की दसवीं पुस्तक में ऐसा आया है। एक करोड़ पूर्व की आयु लेकर जन्म लिया जीव एक अन्तर्मुहूर्त में अपनी आयु का कदलीघात के द्वारा घात करके काट देता है। कदलीघात का अर्थ है जैसे केले के पेड़ को हरी भरी अवस्था में काट दिया जाता है।
तो ऐसे काट देता है जैसे एक करोड़ पूर्व की आयु को असमय में घात कर वापस उतनी आयु बाँधकर जन्म ले लिया। ये भी विचित्रता है! ये अकाल मरण है। आप ये कहते हैं कि ‘महाराज ये तो व्यवहार में कहते हैं, ये अकाल मरण नहीं है जिसका जब मरण होना होता है तभी होता है।’
१९८७ की बात है ललितपुर में वाचना चल रही थी। मैं उन दिनों क्षुल्लक था। तो वाचना के बाद प्रश्नोत्तरी होती थी जो विद्वान् वाचना की पीठ पर रहते थे वे कुछ प्रश्नों का उत्तर देते थे आखिर में आचार्य गुरूदेव का समीक्षात्मक प्रवचन होता था। तो पण्डित फूलचंद सिद्धान्त शास्त्री बैठे हुए थे। उनके पास पर्ची आयी कि ‘अकाल मरण होता है कि नहीं होता है?’ थोड़ी सी एक अलग धारा के विद्वान् थे। जब उनके पास पर्ची आयी तो बोले कि ‘निश्चय से नहीं होता व्यवहार से होता है।’ निश्चय से अकाल मरण नहीं होता व्यवहार से होता है। जैसे ही उन्होंने कहा कि निश्चय से नहीं होता व्यवहार से होता है। तो आचार्य महाराज ने कहा कि ‘पंडित जी! निश्चय से तो मरण ही नहीं होता, मरण मात्र व्यवहार है। निश्चय में तो न जन्म है और न मरण है।’ हम लोग व्यवहार में कहते हैं कि ये अकाल मरण है। मरण ही व्यवहार है। अब हम क्या करें? इसमें जब भी किसी का मरण हो, असमय में हो जाए तब कहो कि उसकी ऐसी ही होनहार थी, इतनी ही उसकी आयु थी कालबली से बड़ा बली इस संसार में कोई दूसरा नहीं है। ये मत सोचो कि जब मेरी मौत होनी होगी तब ही होगी। गाड़ी चलाओ और आँख मूंद कर चलाओ तो गड़बड़ होगी ही। सामने से ट्रेन आ रही है आप ट्रैक पर खड़े हो जाओ कि मेरी आयु होगी तो ट्रेन मुझे नहीं मार सकती है। तो यथा सम्भव सावधानी रखो। लेकिन लकीर के फकीर कभी मत बनो।
अब पूछा कि किस कारण से अकाल मरण होता है जो व्यक्ति दूसरे की हत्या करता है, गर्भपात करता है और कराता है, दूसरों को प्रताड़ित करता है और दूसरे के धन आदि का हरण करता है वो सब अकाल मृत्यु का शिकार होते है। ऐसा कुछ एक शास्त्रों में बताया है।
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