सल्लेखना, संथारा, समाधिमरण क्या?
What is sallekhana, samadhi maran, santhara?
“सल्लेखना (समाधि या सथारां) मृत्यु को निकट जानकर अपनाये जाने वाली एक जैन प्रथा है। इसमें जब व्यक्ति को लगता है कि वह मौत के करीब है तो वह खुद खाना-पीना त्याग देता है। दिगम्बर जैन शास्त्र अनुसार समाधि या सल्लेखना कहा जाता है, इसे ही श्वेतांबर साधना पध्दती में संथारा कहा जाता है। सल्लेखना दो शब्दों से मिलकर बना है सत्+लेखना। इस का अर्थ है – सम्यक् प्रकार से काया और कषायों को कमज़ोर करना। यह श्रावक और मुनि दोनो के लिए बतायी गयी है।इसे जीवन की अंतिम साधना भी माना जाता है, जिसके आधार पर व्यक्ति मृत्यु को पास देखकर सबकुछ त्याग देता है। जैन ग्रंथ, तत्त्वार्थ सूत्र के सातवें अध्याय के २२वें श्लोक में लिखा है: “”व्रतधारी श्रावक मरण के समय होने वाली सल्लेखना को प्रतिपूर्वक सेवन करे””। “
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