प्रातिहार्य का आध्यात्मिक स्वरूप क्या है?
प्रातिहार्य शब्द का अर्थ निरूपित करते हुए कहा है कि- “यह प्रातिहार्य है क्या? तीर्थंकरों के महिमा बोधक चिन्हों को प्रातिहार्य कहते हैं। जिससे तीर्थंकरों की विशिष्टता की पहचान हो।
अष्ट-प्रातिहार्य- जो प्रतिहारी यानि सेवक की तरह हमेशा उनके साथ रहते हैं उसे प्रातिहार्य कहते हैं। इन में निश्चित रूप से कुछ न कुछ वैज्ञानिक या आध्यात्मिक प्रतीक छिपे हुऐ हैं। मैंने जहाँ तक प्रातिहार्यों के विषय में चिंतन किया है, उनमें से कुछ की चर्चा आप से करना चाहता हूँ।
जैसे तीर्थंकरों का एक प्रातिहार्य है-अशोक वृक्ष। ऐसा कहा जाता है कि जिस भी तीर्थंकर को जिस वृक्ष के नीचे केवल ज्ञान होता है, वह उनका अशोक वृक्ष कहलाता है। और कैवल्योपलब्धि के बाद सारे जीवन वह अशोक वृक्ष उनके साथ जुड़ा होता है। मैंने इस पर चिंतन किया कि आखिर यह वृक्ष क्यों ? मुझे समझ में आता है कि वृक्ष निश्चित रूप से ऊर्जा का सम्वाहक तत्व है। सभी महापुरुषों की बोधि में वृक्ष की भूमिका रही है। तीर्थंकर भगवंत वृक्ष के नीचे दीक्षित होते हैं और वृक्ष के नीचे केवल ज्ञान प्राप्त करते हैं। क्यों? वृक्ष पूरे ब्रह्मांड से ऊर्जा को संग्रहित करते हैं और उनके नीचे बैठने से हमें ऊर्जा मिलती है।
एक प्रयोग हुआ। एक गमले में एक पौधा लगाया गया। गमले में पौधा लगाने के बाद प्रतिदिन उसमें पानी डाला गया। पौधा लगाने के पहले उसकी मिट्टी का वजन किया गया, गमले का वजन किया गया, प्रतिदिन जितना पानी डाला गया उतने पानी का वजन किया गया। पौधा थोड़ा बड़ा हुआ। दो महीने बाद १५ दिन पहले से पानी सींचना बंद कर दिया गया। मिट्टी सूख गई और उसका दुबारा वजन लिया गया। तो सात सौ ग्राम वजन अधिक था। यह वजन कहाँ से आया? जितना पानी डाला गया वह उसका वजन है, मिट्टी का वजन है, गमले का वजन है और पानी सूखने के बाद तोला गया है। ७०० ग्राम अधिक है, यह ब्रम्हांड से जो उसने एनर्जी खींची है उसका वज़न है। तो यह वृक्ष, एक ऐसा प्रतीक जो हमको ऊर्जा देता है। बस हमारा उससे कनेक्शन कैसा हो? तो इसलिए तीर्थंकर भगवंत वृक्ष के नीचे बैठते हैं।
माया सभ्यता, जो अमेरिका के एक एरिया में है, हमने उसके पुराने मॉन्यूमेंट्स देखे, फोटो देखे। उसमें भी वृक्षों के नीचे विशिष्ट आकृतियों को बनाया गया। तो कोई ना कोई कनेक्शन ऐसा होता होगा जो वृक्षों के साथ अपना तालमेल बना कर अपनी चैतन्य ऊर्जा को जागृत कर सके। वृक्ष के नीचे बैठने से यह भी होता होगा कि हमारी ऊर्जा का अप-व्यय नहीं होता होगा और हम अपनी चेतना को अंतर्मुखी बनाते होंगे। फिर वृक्ष हमारे लिए सब प्रकार की सर्दी गर्मी की बाधाओं को प्रतिकार रहित हो कर के सहता है और अपने ऊपर पत्थर मारने वाले को भी मीठे फल देता है। तो वृक्ष सहिष्णुता और सरलता का भी प्रतीक है। सर्वशः बनने का लक्ष्य लेकर, सरल चित्त तीर्थंकर, वृक्षों के नीचे ही दीक्षित होते हैं और वृक्षों के नीचे ही उन्हें केवल ज्ञान होता हैं। शायद उसके पीछे यह भी एक कारण होगा। इसी तरह अन्य प्रतीकों का भी अपना काफी कुछ अर्थ है, जैसे भामंडल है। तो acoustic science ( ध्वनि विज्ञान) इस बात को बोलता ही है। अन्य पुष्प वृष्टि आदि के प्रतिहार्य भी हैं। इस पर अभी और अधिक अध्ययन और अन्वेषण की आवश्यकता है। जिस पर लोग छानबीन करके लोगों को तथ्यात्मक ढंग से अवगत करा सकें।
Leave a Reply