शिक्षा का उद्देश्य क्या है?

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शंका

आचार्यश्री ने हमें बताया कि विद्यार्थी जीवन में शिक्षा का उद्देश्य जीवन निर्वाह नहीं, जीवन निर्माण है। पर आज के समय में जीवन निर्माण इतना कठिन है कि हम उसको कर ही नहीं सकते और करना भी चाहे तो अनेक बाधाएँ आएँगी। उसके लिए हमें क्या करना होगा?

समाधान

जीवन के निर्वाह की जगह जीवन का निर्माण बहुत जरूरी है। यह बच्ची जिस तरीके से बोल रही है, आप लोगों को बड़ी खुशी होगी क्योंकि यह बच्ची प्रतिभास्थली जबलपुर में पढ़ रही है। 

जीवन का निर्माण शिक्षा से नहीं; शिक्षा के साथ संस्कार से होता है। आजकल माँ बाप अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा की बात तो खूब सोचते हैं; उनके संस्कारों की बात नहीं सोचते। जबकि शिक्षित होने से ज्यादा ज़रूरत संस्कारित होने की है। आज की नई पीढ़ी को जब तक आप संस्कार युक्त शिक्षा नहीं देंगे तब तक आप उनका भला नहीं कर सकेंगे। आज जो समाज में विकृतियाँ आ रही हैं वह संस्कारहीन शिक्षा के परिणाम स्वरूप आ रही हैं। इसीलिए, बच्चों को अच्छी शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार जिनमें उन्हें अच्छा वातावरण मिलें और बहुत अच्छे तरीके से वे अपने जीवन को आगे बढ़ा सकें।

जिस संस्थान में यह बच्ची पढ़ रही है, प्रतिभास्थली, यह आचार्यश्री की एक बड़ी दूरदर्शी सोच की अभिव्यक्ति है। जहाँ बच्चियों के जीवन का निर्माण हो रहा है। यह बच्ची पढ़ लिख कर के जिस घर में जाएगी उस घर को स्वर्ग बना डालेगी,  इसमें कोई संदेह नहीं। वहाँ उनको ऐसा संस्कार मिल रहा है; शिक्षा तो बहुत मिलती है लेकिन संस्कार बहुत अच्छे मिलते हैं, ऐसे संस्कार मिलने चाहिए। आज कहा जाता है, ‘जो साक्षर हैं वही राक्षस हो जाते हैं!’

शिक्षा और संस्कार युक्त शिक्षा में क्या अन्तर है? मैं जब पढ़ता था तो मेरे एक शिक्षक थे। उनसे किसी बच्चे ने पूछा- “३ और २, ५ ही क्यों होते हैं, ४ या ६ क्यों नहीं?” यह सवाल मैं आपसे पूछूं, क्या जवाब दोगे? मैं पढ़ता था चौथी-पाँचवी क्लास में; तब की बात है। उन्होंने जो जवाब दिया, आज भी मुझे याद है। उन्होंने कहा, “बेटे जब हम कोई चीज लें, तो ३ और २, ५ की जगह ६ न ले लें और कोई चीज़ दें, तो ३ और २, ५ की जगह ४ ना दे दें।  इसलिए, ३ और २, ५ होते हैं।” यह है शिक्षा के साथ संस्कार! इसलिए संस्कार युक्त शिक्षा को ज़रूर ध्यान में रखना चाहिए।

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