पूजन से क्या लाभ होता है और पूजन घर पर करने का क्या लाभ है?
पूजन गृहस्थों का एक श्रेष्ठ अनुष्ठान है। पूजन करने से कर्मों की निर्जरा होती है।
पूजा का मूल स्थान तो देव स्थान है जहाँ भगवान विराजमान हों, वहीं पर पूजा करना चाहिए। पूजा के विषय में ऐसा कहा गया है कि जिनेन्द्र भगवान की पूजा शुभोपयोग को बढ़ाने में श्रेष्ठ कारण है और तात्कालिक पुण्य के बन्ध की अपेक्षा असंख्यात गुणी कर्मों की निर्जरा होती है। आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी ने लिखा है कि जो भगवान के चरण कमल के मूल को भक्ति के उत्कृष्ट राग के साथ प्रणाम करते हैं, वे संसार रूपी लता की मूल को उस तरह से छेद डालते हैं जैसे किसी तलवार से किसी लता को छेद दिया जाता है, तो ये संसार के विशिष्ट को श्रेष्ठ निमित्त जिनेन्द्र भगवान की पूजा है।
आचार्य जिनसेन महाराज ने गृहस्थों के लिए चार धर्म बताये हैं- देव पूजा, पात्र दान, व्रत पालन और उपवास। सबसे पहला पुण्य जिनेन्द्र भगवान की पूजन से, दूसरा पुण्य पात्र के दान से, तीसरा पुण्य उपवास से और चौथा पुण्य व्रतों के आचरण से, तो ये अपनी शक्ति अनुसार चारों प्रकार की पुण्यकारी क्रियाएँ गृहस्थों को सतत करते रहनी चाहिए।
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