शंका
जब हम कोई भी मन्त्र या काव्य आदि पढ़ते हैं तो कई तरीकों से पढ़ते हैं, जैसे उसका उच्चारण करना जिसमें ध्वनि उत्पन्न होती है या फिर जिसमें केवल होठ हिलते हैं परन्तु ध्वनि उत्पन्न नहीं होती। एक साधना की दृष्टि से श्रावक के लिए कौन सा तरीका सर्वश्रेष्ठ है?
समाधान
सबसे पहले जो उच्चारण पूर्वक बोलते हैं उसे बोलते हैं पाठ। जो बिना उच्चारण के बोलते हैं उसे बोलते हैं उपांशु और जो मन ही मन में बोलते हैं उसको बोलते हैं मानस। उत्तरोत्तर इनमें एकाग्रता बढ़ती जाती है। जिसमें एकाग्रता जितनी बढ़ती जाती है उसमे उतना लाभ होता है। प्रारम्भ में पाठ करें, फिर उपांशु और अन्त में मानस। इसी क्रम में करने का प्रयास करें।
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