जैन परम्परा में वैश्य का स्वरूप क्या है और मैं त्यागी हूँ पर मेरे घर बहुत कम मुनियों का आहार हुआ है, ऐसा क्यों?
जानते हो आहार इच्छा से नहीं होता, योग होता है तभी होता है और त्यागियों को इसका ज़्यादा विकल्प नहीं करना चाहिए। न घर परिवार हमारा है, न संसार हमारा है, हमारी दुनिया बिल्कुल अलग है और तुम जिस ज्ञान की आराधना में लगे हो, लगे रहो।
तुम्हारा जो दूसरा प्रश्न है, जैन परम्परा में वैश्य का स्वरूप क्या है? वैश्य का मतलब होता है – जो व्यापार व्यवसाय आदि के माध्यम से अपनी जीविका चलाए। जब कभी भी ऐसा कहते हैं कि व्यापार-व्यवसाय से जीविका चलाया जाएँ इसका अर्थ लोग केवल यह सोचते हैं, व्यापार करना वैश्य का स्वरूप है, खेती करना वैश्य का स्वरूप नहीं। जबकि पदम पुराण में वैश्य का स्वरूप बताते हुए कहा “व्यापार, खेती, गोरक्षा इनमें जो लगे रहते हैं, वैश्य शब्द से लोक में उन्हें जाना जाता है। तो कृषि कर्म भी एक आर्य कर्म है, वैश्यों का कर्म है, इसे हमें अपनी संस्कृति मानकर के स्वीकार करना चाहिए।
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