मन्दिर में देव-दर्शन करने की क्या विधि क्या है?
मन्दिर जाने के लिए सबसे पहले अपने मन में अपने भावों को अच्छा करना चाहिए।
मन्दिर क्यों जा रहे हैं? दर्शन करने के लिए। दर्शन का मतलब होता है भगवान से मिलने जाना। तुम अपने नाना-नानी से मिलने जाते हो, तो मुँह लटका के जाते हो या खुश होकर? खुश होकर ना? तो भगवान से मिलने जाना हो तो कैसे जाओगे? रो धोकर, जोर ज़बरदस्ती से, मम्मी-पापा कहेंगे तब या अपनी इच्छा से? कैसा मन रहेगा उस समय खूब ख़ुशी का या रोने धोने का? तो खुश होकर के जाओ, अपने आप को भाग्यशाली महसूस करते हुए जाओ, कि मैं कितना भाग्यशाली हूँ जो आज भगवान के दर्शन करने जा रहा हूँ और अगर उनकी दृष्टि मेरे ऊपर पड़ जाएगी तो मेरा कल्याण हो जायेगा।
फिर मन्दिर के दरवाज़े पर अपने चप्पल जूते उतारो, पाँव धोओ, हाथ धोओ, मुँह में अगर पहले से कुछ खाया हुआ है, तो कुल्ला करो फिर दरवाज़े पर पहुँचते हुए तीन बार ‘निःसही-निःसही-निःसही’ उच्चारण करो। इसका मतलब ‘निकल जाए-निकल जाए-निकल जाए’, मतलब ‘मेरे अन्दर की जितनी भी नकारात्मक भावनाएँ हैं वो निकल जाएँ, मेरी नेगेटिविटी ख़त्म हो जाये।’ फिर ‘ॐ जय जय जय नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु णमोकार मन्त्र’ से लेकर पूरा ‘चत्तारि मंगलम’ का पाठ करो। वहाँ अगर घंटा हो तो घंटा बजाओ और घंटा जोर से बजाकर वही खड़े रहो ताकि घंटे की ध्वनि तुम्हारे सर पर आये और उस ध्वनि के प्रभाव से तुम आनन्द की अनुभूति करो। घंटा किसके लिए बजाया जाता है? मन्दिर में सबको जगाने के लिए? नहीं! घंटा बजाते हैं अपने मन को जगाने के लिए।
फिर भगवान की जय-जय कार करते हुए भगवान की वेदी के पास पहुँचो, अपने हाथ के पुंज चढ़ाओ, झुककर, बैठकर पंचांग गवासन में भगवान को धोंक दो। फिर खड़े होओ कोई स्तुति आती हो ‘प्रभु पतित पावन’ आदि के रूप में स्तुति करो, फिर धोंक दो, नौ बार णमोकार मन्त्र का उच्चारण करने के बाद भगवान की तीन प्रदक्षिणा दो और वापस भगवान को धोंक दे करके दूसरी वेदी पर चले जाओ। मन्दिर जाने की सामान्य विधि यही है।
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