पूजा, आराधना, उपासना- एकार्थवाची हैं या भिन्न अर्थ वाले हैं?
सामान्य रूप से देखा जाए तो एकार्थवाची हैं लेकिन जब हम इनकी गहराई में जाएँ तो इनमें कुछ भिन्नता भी दिखती है।
पूजा – अष्ट द्रव के साथ पूज्य के गुणों के प्रति अपनी भक्ति को प्रकट करने का नाम है।
आराधना राध संचितओं धातु से बना है। अपने इष्ट के गुणों का बार-बार चिन्तन करके, उनकी भक्ति करना आराधना है। आराधना में पूजा और उसकी सामग्री कोई जरूरी नहीं।
आराधना में हमारी अलग प्रकार की आराधना होती है जैसे मुनियों की चतुर्विद आराधना होती है। आराधना हमारी साधना का भी एक रूप है और अन्त में पूजा जहाँ हम अपने इष्ट की भक्ति करते हैं।
इससे आगे उपासना शब्द है, उपासना शब्द बहुत व्यापक अर्थ में है। उपासना का मतलब भगवान की पूजा-आराधना तो है ही; जितने भी धार्मिक कार्य हैं वे सब उपासना के अन्तर्गत आते हैं। ‘उप’+‘आसना’ से उपासना है- जो सांसारिक विषय भोगों से मुक्त करके व्यक्ति को परमार्थोमुखी बनाते हैं वह सब उपासना है, तो उपासना में दान, पुण्य, व्रत आदि यह सब आ जाते हैं।
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