आत्मा और चेतना में क्या अंतर है?

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शंका

मैं जैन धर्म के वैज्ञानिक पहलुओं (scientific aspects of jainism) पर पिछले 15 वर्षों से कार्य कर रहा हूँ। आजकल असमंजस में हूँ क्योंकि वहाँ मुझे इंटरप्रिटेशन (व्याख्या) के अन्दर समस्या आ रही है। एक ओर कहा जाता है कि आत्मा internal energy state (आंतरिक ऊर्जा का स्तर), परमात्मा है; दूसरी ओर एक विषय है consciousness (चेतना) और तीसरी ओर है कर्म। कर्म का पूरा process (प्रक्रिया) चेतना के माध्यम से होती है। फिर चेतना तीन तरह की होनी चाहिए, मन और वचन और काया। क्या आत्मा और चेतना में कोई अन्तर है? यदि है, तो चेतना की प्रक्रिया कैसे होती है?

समाधान

आपका प्रश्न आपकी अध्ययनशील मानसिकता का द्योतक है। जैन परम्परा में आत्मा, चेतना, कर्म सब की व्याख्या की गई है और सबका अपना-अपना स्वरूप है। आत्मा की जब बात आती है, तो वह हमारे शुद्ध अवस्था की बात होती है। चेतना और आत्मा दोनों को एक भी माना गया और अलग भी माना है। जब हम स्वभाव की दृष्टि से बात करते हैं तो शुद्ध आत्मा और शुद्ध चेतना दोनों समान हैं लेकिन आत्मा के अन्दर आई हुए अशुद्धि को देखते हैं तो हमारी चेतना के दो रूप बन जाते हैं- एक शुद्ध चेतना और एक अशुद्ध चेतना। शुद्ध चेतना हमारे आत्मा के शुद्ध स्वरूप का प्रतिनिधित्व करती है और अशुद्ध चेतना वह है जो कर्म के निमित्त से प्रकट होती है। अशुद्ध चेतना मन, वचन और काया तीनों में जुड़ी हुई है। इस दृष्टि से देखा जाएँ तो चेतना मन के साथ प्रवाहित होती है। आत्मा के अशुद्ध रूप का नाम चेतना है और आत्मा का शुद्ध स्वरूप है eternal power (शाश्वत शक्ति), चेतना हमारी आत्मा का एक अंग है। 

हमारे यहाँ अलग-अलग तरीके से इसकी व्याख्या की गई, कहीं दोनों को एक ही माना गया है और कहीं दोनों को अलग-अलग भी माना गया है। इसके लिए अगर आप जानना चाहते हैं तो जिनेन्द्र वर्णी की दो छोटी-छोटी कृतियाँ – कर्म रहस्य और कर्म सिद्धान्त, इनको आप पढ़ें, जितनी संयुक्त और सरल व्याख्या उन्होंने की है आज तक किसी ने नहीं की है।

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