नेता की जय, राजा की जय और भगवान की जय में क्या अन्तर है? जयकारा लगाते समय हमारे भाव क्या होने चाहिए?
‘जय’ शब्द के अर्थ को पहले समझें। जय शब्द का अर्थ होता है- जीतना। जिसने जीत लिया और जो विजेता है, उसके प्रति जय शब्द का प्रयोग किया जाता है। यहाँ जय एक विशिष्ट प्रकार का आदर, बहुमान और यशगान का भी प्रतीक है। तो महिमावंत पुरुषों की महिमा, जय के माध्यम से गायी जाती है। तो जब हम भगवान की जय बोलते हैं, मुनिराज की जय बोलते हैं, तो उन आत्म विजेताओं के लिए हमारे मुँह से निकले उद्गार जयकार हैं। हम हमारे मुख से उनकी जयकार करें। वे सदैव जयवंत हों, जयशील हों, जिन्होंने अपने आप को जीतकर तीन लोक पर अपना साम्राज्य स्थापित किया।
राजा-महाराजा की जय की जाती है, वो उनकी महिमा को बताने के लिए की जाती है। रहा सवाल कि दोनों की जय में क्या अन्तर होना चाहिए? शास्त्र के विधानानुसार ‘लोक में किसी की जय बोलो तो एक बार बोलो और भगवान और गुरु की जय बोलो तो तीन बार बोलो’, ये क़ायदा है। पंचाश्चर्य में एक आश्चर्य है, आकाश से जय, जय, जय की तुमुल ध्वनि। लोग शॉर्टकट में एक जैसे चलते हैं। राजा- महाराजा को बराबर बना दोगे तो मामला गड़बड़ हो जायेगा। फिर सवाल ‘एक बार बोलें तो भी भाव में तो अन्तर होता ही है।’ आप राजा, महाराजा, नेता के सामने हाथ जोड़ते हैं और भगवान के समक्ष या गुरुदेव के समक्ष आप हाथ जोड़ते हैं तो दोनों में अन्तर होता है या नहीं? जब भावों में अन्तर है, तो शब्दों में तो अन्तर होगा ही। यदा कदाचित एक बार भी जय बोलते हैं तो इसका मतलब ये नहीं सोचना चाहिए कि सब समान हैं।
आजकल तो एक परम्परा बदल गयी नेताओं की जय की जगह जिन्दाबाद का शब्द आने लगा है। ये ‘जय’ अब कम हो गया है इसलिए ये फर्क आ गया है। राज दरबार आज भी लगता है, कब? पंचकल्याणक आदि में आप लोग देखते हैं कि महाराज की जय हो, महाराज ही जय हो। ये जो शब्द का प्रयोग है इसका मतलब है कि उनका सर्वत्र नाम हो, उनका सर्वत्र यशोगान हो, उनकी महिमा सर्वत्र फैले, ये एक भाव है। इस अर्थ में जय का प्रयोग होता है, तो हर शब्द की अपनी-अपनी तासीर है।
मैं आपसे एक ही बात बोलता हूँ कि अगर कोई व्यक्ति अपनी माँ को ‘माँ’ बोलता है और माँ के समान उम्र वाली दूसरी स्त्री को ‘माँ’ बोलता है, तो क्या दोनों के प्रति समान भाव होते हैं? जिस माँ ने तुम्हें कोख से जन्म दिया उसे माँ के नाम का सम्बोधन, और तुम्हारी माँ के समान उम्र वाली स्त्री के लिए निकाला गया ‘माँ’ शब्द का सम्बोधन क्या समान है? शब्द समान हैं पर भाव में ज़मीन-आसमान का अन्तर है। इसलिए गुरु, भगवान की जय और राजा महाराजा की जय में जमीन-आसमान का अन्तर है। दोनों को कभी समान नहीं समझना चाहिए।
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