भाव करते हैं अच्छा करने का, लेकिन अच्छा नहीं हो पाता है, ये कर्म का उदय है। लेकिन बुरे कार्य के अन्तर्गत कोई व्यक्ति चोरी करता तो यह भी कर्म का उदय है क्या? जैसे ५० लाख रुपये की चोरी हो गई वो उसके कर्म का उदय था लेकिन जो चोर है उसका कौन से सा कर्म का उदय है?
जिसकी चोरी हुई उसके पाप कर्म का उदय है, और जिसने चोरी की उसकी पाप क्रिया का फल है। पाप कर्म और पाप क्रिया भिन्न-भिन्न हैं। तुम्हारे पाप कर्म का उदय था जिससे तुम्हारे घर में चोरी हुई और जिस चोर ने चोरी की उसने पाप की क्रिया की। इसकी backing (पीछे) में कौन था? उसका पुण्य था! हाँ पुण्य था कि उसको मौका मिल गया, घर में ताला नहीं, घर में कोई रखवाला नहीं, अनुकूलता ऐसी कि कोई देखने वाला नहीं, पकड़ने वाला नहीं, ये पुण्य था। पुण्य के उदय में उसने पाप की क्रिया की, हाथ साफ कर लिया। यहाँ तो उसके पुण्य का उदय था, पर पाप की क्रिया करके पाप का बन्ध किया। तुम अगर समता रखोगे तो निर्जरा कर लोगे और वो बन्ध करके पता नहीं कहाँ जायेगा? उसने चोरी की क्रिया की, वह कभी प्रशंसनीय नहीं। वो पाप क्रिया है। लेकिन ध्यान रखना कि पाप की क्रियाओं में सफल होने के लिए कई बार पुण्य की आवश्यकता होती है। पुण्य के उदय में लोग ज्यादा पाप करते हैं। पाप के उदय में पाप करने वाले लोग कम हैं और पुण्य के उदय में पाप करने वाले लोग ज्यादा हैं। पुण्य के उदय में पाप करने वाले लोग रसातल में जाते हैं।
Leave a Reply