शंका
विधान और अनुष्ठान में क्या अन्तर है?
समाधान
विधान अपने आप में अनुष्ठान है। लेकिन कई-कई बार जब बड़े स्तर पर विधान आदि का आयोजन करते हैं, तो आयोजकों के लिए वह अनुष्ठान नहीं, कार्यक्रम बन जाता है। उसमें सभी व्यवस्थाओं के लिए बहुत कुछ सोचना पड़ता है, बहुत चिन्ता करनी पड़ती है और अधिकतम एनर्जी उसी में लग जाती है। तो फिर आपकी विशुद्धि और भाव धारा बँट जाती है। लेकिन जब आप थोड़े से लोगों के बीच कोई आयोजन करते हैं और उस आयोजन में बाकी सब बातों से एकदम मुक्त हो जाते हैं, जहाँ धर्म प्रभावना का लक्ष्य गमन होकर, धर्म आराधना का लक्ष्य बन जाता है, तो वो अनुष्ठान कहलाता है। और जहाँ धर्म आराधना के साथ बड़े स्तर पर धर्म प्रभावना की बात होती है, तो वो आयोजन बन जाता है। आयोजन, अनुष्ठान है लेकिन अनुष्ठान आयोजन हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है।
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