बच्चों को आत्मनिर्भर बना देने के बाद माता-पिता का कर्तव्य

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शंका

हमने अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए अपने बच्चों को पढ़ा लिखा दिया है। आज वे graduate हो गए हैं और USA में कार्यरत हैं। कृपया मार्गदर्शन दें, अब हमारा क्या कर्तव्य है? और बच्चों का हमारे प्रति क्या कर्तव्य है?

समाधान

एक पिता का यही कर्तव्य होता है कि अपनी संतान को योग्य बनाकर उनके पाँव पर खड़ा कर दे; और उन्हें इस लायक बनाए कि वह धनार्जन के साथ धर्माजन भी कर सकें। आपने अपना दायित्व पूरा किया, बच्चे योग्य बन गए और और अब आपका दायित्व यह है कि बच्चों के सेट होने के बाद अपने आप को सेट करो।

जिनके बच्चे बाहर देशों में चले जाते हैं, वहां पढ़लिख कर उन्हें वहीं सब कुछ अच्छा लगने लगता है और वे वहीं settle हो जाते हैं, तो मांबाप के अंदर एक बड़ा frustration सा जाता है, जीवन में ख़ालीपन लगता है कि अब हम क्या करें! मैं उन सभी लोगों से यह कहना चाहता हूं कि आपने अपना कर्तव्य निभा दिया, अपनी संतान को सही तरीके से पढ़ा लिखा कर के मजबूत बना दिया, पाँव पर खड़ा कर दिया; अब आप अपनी आत्मा की उन्नति की बात सोचो! यह सोचो की पहली पारी आपकी शानदार हुई है, स्कोर अच्छा खड़ा हो गया है; तो अब दूसरी पारी में बल्ला लेकर मैदान में उतरने की आवश्यकता नहीं है। अब दूसरी पारी बाहर की नहीं, भीतर की पारी शुरू करो; ताकि आपकी अंदर की आशाएंअपेक्षाएँ सब शांत होंगी और अपने जीवन के पथ को ज्यादा सरलता से प्रशस्त कर पाएंगे।

जहां तक बच्चों का संबंध है, बच्चे दूर रह कर के भी पास रहें। आज की तकनीक इतनी advance हो गई है कि अब क्षेत्र की दूरी, दूरी नहीं रहती। यदि बच्चों का मांबाप के प्रति जुड़ाव रहता है तो दूर रहकर भी अपने मां बाप के साथ वे बहुत अच्छा संवाद रख सकते हैं, प्रेम कायम कर सकते हैं। बच्चों का यह दायित्व होता है कि वे अपने मां बाप को कभी ना भूलें क्योंकि आज वे जो कुछ भी हैं, अपने मांबाप की कृपा से हैं; और मांबाप को चाहिए कि वह अपने बच्चों से ज्यादा अपेक्षा रखें। ये सोचें– ” एक दायित्व मैंने पूरा किया वह पर के लिए है; अब दूसरा मेरा दायित्व है जो स्वयं के प्रति है, मुझे उसे भी पूरा करना है।” 

मैं एक बात सब से कहता हूं, आपके पिताजी अपने साथ कुछ ले जा नहीं सके, आप को देकर गए; आप अपने साथ कुछ नहीं ले जा सकोगे, अपने बेटों को दोगे; और बेटे भी अपने साथ ले जा नहीं सकेंगे, अपने बेटे को देंगे। कब तक देते रहोगे ? अपने साथ ले जाने के लिए भी कुछ रास्ता अपनाओ, जिससे जीवन का कल्याण हो सके। जीवन के उत्तरार्ध में हमारी संस्कृति में जो वानप्रस्थ आश्रम की व्यवस्था है, उस ओर मनुष्य की दृष्टि जानी चाहिए। मैं यह पाता हूं कि यह दुर्लभ मनुष्य जीवन को पाने वाले लोग अपना सारा जीवन गोरखधंधे में ही बिता देते हैं, और उसमें ही अपने जीवन को कृतार्थ समझते हैं; जबकि यह बड़ा भ्रम है। हमें आत्म पुरुषार्थ करना चाहिए। अपने आत्मा के कल्याण का मार्ग पकड़ना चाहिए, जो हमारे जीवन का सबसे प्रमुख तत्व है। यह बात कभी भूलना नहीं कि यह मनुष्य जीवन बार-बार मिलने वाला नहीं है, इसलिए दुर्लभता से प्राप्त इस मनुष्य जीवन को शांति और प्रसन्नता से जीते हुए लोग और लोकोत्तर दोनों हितों का संपादन करने का प्रयास करना चाहिए।

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