ऐसा कहा जाता है कि “Language is more powerful than the word (भाषा सबदों से अधिक प्रभावशाली होती है)” आप भी अपने प्रवचन या शंका समाधान में, अपनी बॉडी लैंग्वेज के माध्यम से अपनी बात रखते हैं। किसी के सामने अपनी बात रखने के लिए क्या बॉडी लैंग्वेज महत्त्वपूर्ण है, कृपया समाधान करें?
उत्कर्ष जी, सागर
लैंग्वेज से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हमारी बॉडी लैंग्वेज है। हम कहते हैं वक्तम् वक्ति हि मानस: हम मुख से जो बोलते हैं वह हमारी मुख की भाषा होती है लेकिन हमारा शरीर जो कहता है, वह हमारे हृदय की भाषा होती है। जब तक हमारी बॉडी लैंग्वेज किसी चीज से नहीं जुड़े तब तक उसका प्रभाव नहीं होता। यदि किसी पुतले के माध्यम से कोई स्पीकर फिट कर दिया जाए, आप वे शब्द सुनें और उनमें कोई हावभाव न दिखे, आपके ऊपर क्या असर होगा? आप किसी व्यक्ति से सीधे सुन रहें है जिसमें आरोह-अवरोह है, उसकी भाव-भंगिमा आपके साथ जुड़ रही है, उसका हाव-भाव उसके साथ जुड़ रहा है, उसकी बात आप सुनेंगे तो आपके ऊपर क्या असर होगा? यदि मैं ऐसे ही आँख बंद करके बैठ जाऊँ और बोलना शुरू कर दूँ, तब के असर और जब मेरे भाव और आपके प्रतिभावों में तालमेल बना रहे तब बोलूं तो दोनों में अन्तर होगा कि नहीं? जब मैं अपने वचनों और बॉडी लैंग्वेज के साथ आपसे बात करता हूँ, तो वे मेरे वचन नहीं एक dialogue (संवाद) हो जाता है जो दोनों के साथ संवाद का काम करता है। डायलोग का डायरेक्ट असर होता है वह बड़ा इफेक्टिव होता है। इसलिए हम हमेशा लैंग्वेज के साथ बॉडी लैंग्वेज भी देखें, आदमी की बातों पर जल्दी भरोसा मत करना, उसकी बॉडी लैंग्वेज को जरूर पकड़ने की कोशिश करना क्योंकि कई लोग लच्छेदार भाषा के साथ ‘बतासे में जहर’ मिला कर दे देते हैं, है तो मीठा, लेकिन जानलेवा, बच कर रहना।
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