नियमों का हमारे जीवन में क्या महत्त्व होना चाहिए?

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शंका

कुछ लोग कहते हैं कि ‘हमारा नियम न लेने का नियम है!’ नियमों का हमारे जीवन में क्या महत्त्व होना चाहिए?

समाधान

एक बात बताओ, किसी मनुष्य का जीवन बिना नियम के चला है क्या? नियम तो हमें प्रकृति ही सिखाती है। सांस कैसे लेते हैं? नाक से! नाक बंद करके मुँह से तो सांस नहीं लेते, यह प्रकृति का नियम है न! भोजन मुँह से डालते हैं और निकालते नीचे से हैं, यह प्रकृति का नियम है न! कभी उल्टा करते हैं क्या? नियम कहाँ नहीं है और वो बोलते हैं ‘मेरा नियम नहीं है।’ तुम सब सड़क पर चलते हो राइट साइड चलते हो या लेफ्ट साइड चलते हो? लेफ्ट साइड न! यह नियम है कि नहीं? रेड लाइट दिखती है, गाड़ी रोकते हो, यह क्या है? नियम है न? कोई गेम खेलते हो, नियम को फॉलो करते हो कि बिना नियम के चलते हो?

एक युवक ने ऐसा ही सवाल मेरे से किया, वह दिल्ली का लड़का था। मैं सम्मेद शिखरजी में था। उसके माता-पिता ने कहा ‘महाराज जी! इससे कहो यह थोड़ा नियम ले।’ वो बोला ‘महाराज! मुझे कोई नियम में विश्वास नहीं है, मैं कोई नियम नहीं लूँगा।’ मैं बोला ‘किसने कहा तेरे को नियम में विश्वास रखने को, कोई नियम मत ले। पर एक बात बता, खेलता है?’ वो बोला ‘हाँ महाराज।’ “क्या खेलते हो?” वो बोला ‘क्रिकेट’, “तो फिर तो तुम कहीं भी खड़े हो कर बल्ला चलाते होंगे।” वो बोला ‘नहीं महाराज! क्रीज पर खड़ा होना पड़ता है, पीछे विकेट होता है।’ “तो फिर तुम चाहे जैसे बल्ला घुमा देते होंगे।” तो बोला ‘नहीं महाराज! बहुत सावधानी रखनी पड़ती है, इधर-उधर बल्ला घुमाउंगा तो आउट हो जाऊँगा।’ “पर अभी तो तुम कहते हो कि नियम पर विश्वास नहीं करते, फिर यह सब काम क्यों करते हो”, तो बोला ‘महाराज! उस खेल का नियम है।’ “अभी तूने कहा कि हम नियम पर विश्वास नहीं करते, तू नियम पर विश्वास भी करता है, तो मामला कहाँ गड़बड़ है?”

खेल के नियम को हटा दोगे तो खेल का मज़ा खत्म हो जाएगा और जीवन से नियम को हटा दोगे तो जीवन का मज़ा खत्म हो जाएगा। इसलिए नियम से घबराइए मत, निष्ठापूर्वक निभाइए। हाँ! नियम थोपा नहीं जाता, नियम ग्रहण किया जाता है। हम खुद को अपनी लय में बाँधें। जीवन में अनुशासन बनाना चाहते तो हमें नियमों में बन्धना चाहिए, लेकिन जबरदस्ती किसी को नियम दोगे, तो गलत है। अगर खेल का मज़ा लेना हो, चाहे गिल्ली-डंडा हो या कबड्डी, कोई भी खेल खेलोगे, लुकाछिपी के खेल के भी नियम होते हैं, कंचा खेलते हैं तो उसका भी नियम होता है। भैया! छोटे से खेल में भी जब नियम है, तो जीवन में नियम की उपेक्षा कैसे करोगे?

इसलिए जो कहते हैं कि ‘मेरा नियम नहीं लेने का नियम है’, कम से कम इतना ही कर ले कि यह संकल्प ले लें कि ‘मैं कोई नियम नहीं लूँगा, किसी नियम में नहीं चलूंगा’, पाँच साल जी के दिखा दे फिर मुझसे बात करना।

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