अर्धमागधी और प्राकृत भाषा भगवान की भाषा है, तो ओंकार किसकी भाषा है?
अमित जैन, USA
अर्धमागधी और प्राकृत भाषा भगवान की भाषा है। हमारे यहाँ कहते हैं कि ” सार्वार्ध-मागधीया, भाषा मैत्री च सर्व-जनता-विषया। (नन्दीश्वर भक्ति श्लोक 42)”
भगवान की वाणी के लिए हम लोग पूजा में पढ़ते हैं
“दश अष्ट महाभाषा समेत, लघु भाषा सात शतक सुचेत“(देव-शास्त्र-गुरु पूजन, जयमाला)
ऐसा कहा जाता है कि भगवान महावीर की भाषा आधी अर्धमागधी, आधी मागधी और आधी सर्वभाषात्मक थी। भगवान की वाणी को सर्वभाषा स्वभावी कहा गया है। भगवान की वाणी, दिव्यध्वनि ओंकार ध्वन्यात्मक होती है और इसलिए कथंचित उसे निरक्षर कहते हैं, लेकिन उसमें भी जो स्यात्कार आदि पद होते हैं इसलिए उसे साक्षर भी कहा जाता है। भगवान की वाणी को सुनने वाले सभासदों को अर्धमागधी सहित अन्य सभी महाभाषा और लघु भाषाओं में उनकी वाणी सुनने का अवसर मिलता है, इसलिए भगवान की वाणी को सर्वभाषा स्वभावी कहा गया है।
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