जैन धर्म में स्वाभिमान का क्या अर्थ है?

150 150 admin
शंका

जैन धर्म में स्वाभिमान का क्या महत्त्व है? क्या स्वाभिमान को अभिमान, मान कषाय में माना गया है?

समाधान

चार शब्द हैं- मान, अभिमान, स्वाभिमान और मद। स्वाभिमान का मतलब है अपनी गरिमा को बनाए रखना, इसमें सामने वाले से सम्मान की अपेक्षा नहीं है पर कोई मेरा अपमान न कर दे, यह सावधानी है। मान अपनी योग्यता के अनुरूप सामने वाले से सम्मान की अपेक्षा रखना- मैंं इस लायक हूँ, मैंं साधु हूँ, लोग मुझे पूजें, यह मेरा मान है। मैं साधु हूँ, मैं कोई असाधु कार्य न करूँ ताकि लोग मुझ पर ऊँगली उठा सकें – यह मेरा स्वाभिमान है। स्वाभिमान अनुकरणीय है, मान नहीं। मान का बड़ा भाई है अभिमान– योग्यता से अधिक सम्मान की चाह करना; और सबसे खतरनाक है मद – मान में इतना मत्त हो जाना कि अपने अलावा सबको तुच्छ मानना, किसी को गिनना ही नहीं।

Share

Leave a Reply