प्रतिक्रमण के बाद जो पंक्तियाँ आती हैं, उसमें सोलह नर भव की बात आयी है उसका क्या तात्पर्य है?
जैसे किसी जीव को मनुष्य पर्याय प्राप्त होती है और यदि लगातार मनुष्य से मनुष्य बनते हैं तो ४८ भव में होते हैं। इसमें सोलह पुरूष, सोलह स्त्री और सोलह नपुंसक के, इस तरह ४८ भव लगातार हो सकते हैं पर ऐसा नहीं है कि ४८ भव ही त्रसपर्याय काल में होंगे।
कुछ लोग ऐसी व्याख्या करते हैं कि दो हजार सागर वर्ष त्रसपर्याय के काल में मनुष्य के ४८ पर्याय ही होते हैं। ये बात ठीक नहीं है। आगम कहता है कि लगातार ४८ भव होंगे बीच में एकाध भव का गैप हो जाए, तो वापस ४८ भव भी हो सकते हैं। ये सोलह नरभव जो बताएँ हैं वो इस sense (अर्थ) में बताए हैं कि मनुष्य जीवन हमने पाया, पुरूष पर्याय भी प्राप्त कर ली, लेकिन हम फिर भी धर्म से विमुख रहे, विषय कषाय में लीन रहे और जीवन में प्राप्त अवसर को व्यर्थ गँवा दिया, इसलिए संसार में अटके हैं।
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