युवा पीढ़ी में संस्कारों के अभाव और भटकाव का क्या कारण है?

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शंका

आजकल के युवा जितने पढ़े-लिखे हैं उनमें संवेदना की उतनी ही कमी है, श्रम नहीं करना चाहते और संस्कारों की भी कमी है। रात को 4:00 बजे सोते हैं, सुबह 11:00 बजे उठते हैं तो ऐसे में समाज की स्थिति को कैसे ठीक करें?

समाधान

आपने जो बात कही, मैं उससे सहमत नहीं हूँ। पढ़े-लिखे लोगों में संवेदना की कमी होना, श्रम न करना या संस्कारों का अभाव होना, कुछ लोगों में हो सकता है पर सबमें नहीं। आज की जीवनशैली में जबरदस्त बदलाव आ गया और बदली हुई जीवनशैली के कारण आज की नई पीढ़ी नए तरीके से जीने लगी। हम लोग जब उठते हैं उस समय वे सोते हैं, दिनचर्या में बदलाव है। 

इंटरनेट (internet) से जुड़े हुए व्यवसाय के कारण भी कुछ लोगों की दिनचर्या में बदलाव आया है, यह समय काल के प्रभाव के परिणाम स्वरूप है। हालाँकि, हमें प्रकृति (nature) के विरुद्ध (against) जाना कतई अच्छा नहीं समझना चाहिए। यदि आप प्रकृति के विरुद्ध जाएंगे तो प्रकृति की मार आप पर पड़ेगी ही, आज नहीं तो कल उसका असर होगा और इससे अनेक प्रकार की शारीरिक, मानसिक व्याधियाँ प्रकट होंगी। इसलिए नई पीढ़ी को चाहिए कि वह प्रकृति के साथ चले, आपकी दिनचर्या बदली है पर प्राथमिकता नहीं बदलनी चाहिये। 

हमारी प्राथमिकता क्या है- केवल पैसा कमाना है? यह गलत है। अगर नई पीढ़ी की प्राथमिकता में केवल पैसा कमाना है और ओहदा पाना है, तो वे गलत दिशा में जा रहे हैं, वे learning( सीखना) और earning (कमाना) की लाइन पर जा रहे हैं। यदि उनकी प्राथमिकता में पैसा कमाने और ओहदा पाने की जगह ढंग से जीना, प्रेम से जीना और धर्म करना जुड़ गया तो बाकी सब बातें अपने आप गौण हो जाती हैं। आज का युवा बहुत श्रमशील भी है, अठारह-अठारह, बीस-बीस घंटा खटता भी है। उसके direction (दिशा) को change (परिवर्तित) भर करने की जरूरत है। 

जहाँ तक संस्कारों के अभाव की बात है, मैं नहीं मानता कि आज के युवा पूरी तरह संस्कारहीन हो गए हैं, भटकाव जरुर है। संस्कारों के भटकाव का कारण है संगति और वातावरण। हमें वातावरण को बदलना होगा, युवाओं को उनकी संगति के प्रति जागरूक करना होगा, उन्हें अपने जीवन की प्राथमिकताओं का बोध कराना होगा, इस बात का एहसास कराना होगा कि जीवन का मूल लक्ष्य क्या है, जीवन का ध्येय क्या है, जीवन का प्राप्तव्य क्या है? यदि तार्किक तरीके से हम आज की युवा मानसिकता को यह सब बातें समझाते हैं तो उनमें व्यापक बदलाव की सम्भावनाएँ घटित होती हैं और न केवल सम्भावनाएँ घटित होती हैं, उनमें बदलाव दिखता भी है। हमें इसी स्तर का प्रयास करना चाहिए।

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