हम पूर्व जन्म में कर्म बांध लेते हैं, जिससे वर्तमान में संयम में नहीं आ पाते। वर्तमान में कैसे भाव बनायें, जो हम गृहस्थ में रहते हुये संयम धारण करें और अपने जीवन को सफल बनायें? कृपया आप हमें विस्तार से बतायें।
जो पूर्व जन्म में दूसरों के संयम में बाधा उत्पन्न करते हैं, वो ऐसा चारित्र-मोहनीय कर्म का बन्ध करते हैं कि चाहते हुए भी संयम धारण नहीं कर पाते। संयमियों की अवहेलना करने से, संयमीजनों का उपहास करने से, उनका मज़ाक और खिल्ली उड़ाने से तीव्र चारित्र-मोहनीय कर्म का बन्ध होता है। आचार्य उमास्वामी ने लिखा है: ज्यादा राग-रंग में उलझने वाले भी चारित्र-मोहनीय कर्म का आस्रव करते हैं। अपने आप को इनसे बचाकर चलेंगे, तो आपका ये आस्रव रूकेगा और अपने आप को बचा सकते हैं। रहा सवाल, हमारे अन्दर संयम धारण की योग्यता कैसे बढ़े? इसका एक ही उपाय है, संयमीजनों की सेवा करो और संयमीजनों की संगति करो। इससे तुम्हारे अन्दर का क्षयोपशम बढ़ेगा और संयम धारण की योग्यता बढ़ सकेगी।
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