विश्वास और आस्था में क्या संबंध है?

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शंका

विश्वास ठोस होता है और आस्था अटूट होती है। विश्वास और आस्था का गहरा सम्बन्ध क्या है?

समाधान

मैं सिर्फ इतना कहूँगा कि विश्वास प्रभात है और आस्था भोर है।

प्रभात और भोर में क्या अन्तर है? इसमें कोई अन्तर नहीं है, जो प्रभात है वही भोर है और जो भोर है वही प्रभात है। आस्था और विश्वास दोनों एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द है। हाँ, यदि इसे दूसरे रूप में देखें तो आस्था एक भावनात्मक झुकाव का नाम है और विश्वास में एक निश्चितता का बोध है। आस्था की शुरूआत एक झुकाव (Inclination) से होती है, जिसके प्रति हमारे मन में आकर्षण होता है, धीरे-धीरे यही विश्वास का रूप लेने लगती है कि बस जो है वह वही है, बिल्कुल सही है। ऐसा भाव विश्वास का हो सकता है। हम दोनों में अन्तर देख सकते हैं जैसे कोई व्यक्ति प्यासा हो, प्यास लगी है, कण्ठ सूख रहा है, उसने कहा ‘भाई! प्यास लगी है, कोई उपाय बताओ।’ किसी ने कहा ‘जाओ! यहाँ से दो मील दूर नदी बह रही है, पानी पी लेना, बहुत अच्छा पानी है।’ मन में एक आस्था जगी कि अब मैं प्यासा नहीं मरूँगा, पानी मिल जायेगा। बढ़ रहे हैं, हल्की राहत की अनुभूति हुई। ठंडी-ठंडी हवा आने लगी और आस्था बढ़ती गई और नदी में एकदम साफ स्वच्छ पानी देखा तो मन में विश्वास जग गया कि इस पानी से मेरी प्यास बुझ जायेगी। 

इसलिए आस्था प्रारम्भिक रूप और विश्वास उसकी अगली परिणति-ऐसा भी लिया जा सकता है।

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