आरती का क्या तात्पर्य है?
“आ-रति से आरती शब्द बना है” हमारे यहाँ पुराने समय में आरातिक और निरंजन शब्द भी आता है। अब इसके इतिहास पर काफी गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता है। कई लोग हैं जो आरती का निषेध करते हैं। अगर हम आ-रति का अर्थ आरती लेते हैं भगवान के प्रति अपने इष्ट के प्रति आंतरिक रति का नाम आरती मानना चाहिए-पर्याप्त रति, पूर्ण रति, लगाव, जुड़ाव्। जो ये थाल घुमाया जाता है उसके पीछे भाव रहता है कि ‘जिनकी हम आरती उतार रहे हैं उनके प्रति हमारे मन में विशेष श्रद्धा, विशेष भावना है।’ उस भावना की अभिव्यक्ति होती है। थाल यूँ ही नहीं घूमती, आपने कहा ‘ क्या थाल घुमाने का नाम ही आरती है?’ थाल तब घूमती है जब हमारे भीतर कुछ घूमता है। जिसके प्रति हमारी श्रद्धा होती है, सहज भाव से आरती के थाल उसके सामने घूम जाते हैं और उसके साथ सामने वाले का गुणगान भी होता है।
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