नीतिकार कहते हैं कि “इस संसार में कोई भी चीज़ निरर्थक नहीं है, सभी का कोई न कोई प्रयोजन है।” जिस प्रकार से घोड़ा दौड़ने में वीर है उसी प्रकार से गधा भार ढोने में वीर है। इसी प्रकार जो मनुष्य जीवन की सही सार्थकता है वह मोक्ष में है, यदि कोई अभव्य जीव है, तो उसकी सार्थकता तो किसी चीज़ में होगी नहीं, कृपया समाधान करें?
राजेन्द्र जैन, सांगानेर
जीव के जीवन की सार्थकता मोक्ष में है यह अच्छी बात है। पर हमारे यहाँ एक नीति है, ‘पूरा जाता देखियो, आधा लियो बचाय।’ अब अभव्य तो किसी कारण से अभव्य बना नहीं है वह अकारण अभव्य है। पर जो अभव्य है वह कुछ नहीं कर सकते तो मुनि बन कर के स्वर्ग तो जा सकते हैं इसलिए धर्म कभी निरर्थक नहीं होता, चाहें वह अभव्य ही क्यों न हो। अभव्य को वांछित फल नहीं मिलता लेकिन वह निष्फल नहीं जाता। कुन्दकुन्द स्वामी ने कहा है कि, ‘व्रत और तप से स्वर्ग जाना अच्छा है, अव्रत और अतप से नर्क जाने की अपेक्षा।’
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