शंका
अणुवृती से महावृती बनकर रत्नात्रय धर्म करने में प्रत्याख्यान नामकरण रूप लगता है। उस कर्म का उपशम करने के लिए क्या पुरुषार्थ करना चाहिए? हम सातवीं प्रतिमा का पालन करने के लिए संकल्पित हैं। कृपया मार्गदर्शन करें?
समाधान
चारित्र मोहनीय कर्म में प्रत्याख्यान – अप्रत्याख्यान आदि का जो उपशम होता है और जिस श्रेणी में होता हैं वो नीचे नहीं होता। अनंतानुबंदि का अनुदय रूप उपशम होता हैं इनका तो क्षयोपशम होता है, अपने विरोधी कर्मों के क्षयोपशम का एक ही उपाय है भाव विशुद्धि की अभिवृद्धि, वैराग्य की अभिवृद्धि! आप अपने वैराग्य के भाव को जितना बड़ा सकें, बढ़ाएँ। गुरुओं का समागम करें आपकी वैराग्य भाव में जितनी वृद्धि होगी आपके विशुद्धि स्थान उतने बढ़ेंगे और जितने भी विशुद्धि स्थान बढ़ेंगे आप अपने लक्ष्य के प्रति उतने ही नजदीक पहुंचेंगे।
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