जीवन में सफलता का मापदंड क्या होता है? वर्तमान परिपेक्ष में देखा जाए तो लोग यही कहते हैं कि जिसके पास जितना अधिक पैसा है वह उतना अधिक सफल है; जबकि पैसा तो अनैतिक कार्यों से और बुरे कार्यों से भी कमाया जाता है, तो क्या पैसा ही जीवन में सफलता या असफलता को तय करता है? इस सन्दर्भ में मार्गदर्शन प्रदान करें।
यह गलत अवधारणा है कि पैसा मनुष्य की सफलता का आधार है। सच्चे अर्थों में देखा जाए तो मैं सफलता उसे कहूँगा जो हमारे जीवन को परिपूर्णता प्रदान करे, जो मनुष्य के जीवन को मजबूत बनाए। मेरी दृष्टि में सफल इंसान वह नहीं जिसके पास बहुत पैसा है और बड़ा ओहदा है; सफल इंसान वह है जो जीवन की हर स्थिति में अपने आप को स्थिर बना सके।
जिन्हें हम लोक में सफल कहते हैं, जब उनके पास पैसा होता है, प्रतिष्ठा होती है तब तक तो वह बड़े प्रसन्न दिखते हैं और परिस्थितियाँ बदलने के बाद वह चीजें हाथ से निकल जाती हैं तो अपने आप को संभाल नहीं पाते, डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं।
मुझे कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर की एक बात याद आई, उन्होंने लिखा कि ‘सफल कौन?’ वस्तुतः सफलता क्या है – जो हमारी अपनी हो और हर स्थिति में बनी रहे। पैसा तुम्हारा अपना नहीं, प्रतिष्ठा तुम्हारी अपनी नहीं और तुम्हारा पद तुम्हारा अपना नहीं। उन्होंने एक संस्मरण सुनाया। उन्होंने एक सेठ, एक नेता और एक कवि की बात रखी। एक सेठ था जो बहुत पैसे वाला था लेकिन उसने एक गलत policy (नीति) अपनाई और उसका नुकसान हो गया, कमर झुक गई अब चेहरा दिखाने लायक भी नहीं बचा। एक नेता था जो किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री था, दोबारा मुख्यमंत्री बनना चाहता था लेकिन दूसरे दावेदार आगे बढ़ गए, उसका पद उसके हाथ से चला गया, पद क्या गया चुनाव भी हार गया, वह आगे नहीं बढ़ पाया उसके चेहरे की चमक फीकी हो गई। लेकिन तीसरा एक कवि था, उससे जब बात की गई कि ‘यह जीवन में यह सारी चीजें परिवर्तित हो गईं, तुम इसके विषय में क्या कहोगे?’-उसके जीवन में कुछ व्यापारिक नुकसान हुआ था, एक्सीडेंट भी हुआ था, जब उसके व्यापारिक नुकसान और एक्सीडेंट की बात की गई, तो उसने कहा ‘छोड़ो उन सब बातों को….अभी एक नई रचना लिखी है, पहले इसको सुन लो, फिर बात करना।’
तो उन्होंने कहा कि एक कवि की अपनी कविता ही थी जो उसकी निजी उपलब्धि थी, जो अन्त तक बनी रही; और वह पैसा, वह पद, वह प्रतिष्ठा पराई उपलब्धि थी जो चली गई। इसलिए अपने जीवन की सफलता का आधार उसे मानना जो तुम्हारे अपने व्यक्तित्व के आधार पर निर्मित हुआ हो, किसी दूसरे की बैसाखी के आधार पर नहीं।
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