माँ, मॉम और मम्मी की हमारे जीवन में क्या भूमिका है?
माँ का सर्वोच्च स्थान है, माँ को मान का प्रथम अक्षर कहा है। माँ से ममता मिलती है। माँ ममता की मूर्ति होती है, जिस माँ में मातृत्व होता है, ममता होती है वह अपने बच्चों को उत्तम संस्कार दे पाती है।
माँ के बाद आई मम्मी, यह मम्मी ममी से उत्पन्न हुआ शब्द है। मम्मी शब्द Egypt (मिस्र) का है इसका मतलब है- डेड बॉडी। जब से मम्मी ने माँ की जगह ली तो माँ के प्राण निकल गए, उसकी भावनाएँ कम हो गईं। माँ वह जो बच्चों के भावनात्मक विकास को ध्यान में रखें, बच्चों के संस्कार को ध्यान में रखें और जो बच्चों के व्यक्तित्त्व को अच्छे तरीके से गढ़े। मम्मी जो केवल बच्चों का लालन-पालन करें।
अब बाद में आ गए ममा जो मम्मी का ही विकृत रूप है और इसका कोई अर्थ नहीं होता। यह जो आधुनिक मॉम आ गई है वह बच्चों को भी पूरा समय नहीं देती है, आया के भरोसे छोड़ देती है- वह मॉम है। जो बच्चों को आया के भरोसे छोड़े वह मॉम; जो केवल बच्चों की पढ़ाई का ख्याल रखें, वह मम्मी; और जो बच्चों की पढ़ाई के साथ-साथ संस्कार का भी ध्यान रखे, वह है माँ!
हर स्त्री से मैं कहता हूँ कि अपने बच्चो से माँ कहलवाकर गौरवान्वित महसूस करो। मम्मी और मॉम का कोई मतलब नहीं है।
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