पूजा में अष्टद्रव्य के चढ़ाने के क्रम का क्या महत्व है?

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शंका

पूजा में अष्टद्रव्य के चढ़ाने के क्रम का क्या महत्व है?

समाधान

अष्टद्रव्य से भगवान की पूजा की हमारी प्राचीन परम्परा है। अष्टद्रव्य के माध्यम से हम लोग पूजा करते हैं और इन अष्ट द्रव्यों में जल, चंदन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप और फल ये क्रम रखा गया। प्रायः सब जगह यही क्रम दिखता है। आप ने पूछा- ‘ क्या इसे बदल सकते हैं?’ बदलने के लिए मैं कुछ नहीं बोलता। लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि यह क्रम बहुत सुसंगत है, इसके पीछे कुछ भावनाएँ जुड़ी हैं। आप बहुत गम्भीरता से जानो, भगवान के चरणों में जल चढ़ाते है यह ८ द्रव्य ही क्यों चढ़ाते हैं और यह क्रम क्यों है? इसे आप गम्भीरता से सुनियेगा। 

जल: जल समर्पण का प्रतीक है जल को बहाओ तो जल किधर जाता है, नीचे या ऊपर? जिधर ढाल हो! नीचे जाना, नम्रवृत्ति, समर्पण का द्योतक है जल और पानी का प्रवाह जितना नीचे जाता है उसमें उतनी विराटता आती है। नदी पहाड़ से निकलती है और सागर तक आती है, नदी जितनी नीचे-नीचे जाती है नदी में उतनी ही विराटता आती है। भगवान के चरणों में हम जब अपनी श्रद्धा अर्पित करने जाते हैं तो सबसे पहले जल चढ़ाते हैं कि ‘भगवान इस जल में जैसा समर्पण है वैसा समर्पण हमारे हृदय में भी अर्पित होना चाहिए, प्रकट होना चाहिए’ उसे बताने के लिए जल अर्पित किया जाता है। 

हम लोगों ने बाद में जोड़ दिया ‘जन्म – जरा – मृत्यु विनाशनाय जलम निर्वपामीति स्वाहा’ इतने जल डालने से तुम्हारा जन्म – जरा – मरण हो जाए तो सागर का पूरा जल ही उड़ेल दें लोग। ‘मैं आपकी जल से पूजा करता हूँ, यानी अपने समर्पण भाव को आपके चरणों में अर्पित करता हूँ।’

चंदन: चंदन को कहाँ लगाया जाता है?, माथे पर लगाया जाता है वो श्रद्धा का प्रतीक है। समर्पण के बाद जब हमारे हृदय में भगवान के प्रति श्रद्धा होगी तभी हम उनकी ठीक ढंग से आराधना कर पाएँगे। इसलिए माथे पर लगाया जाने वाला, किसे माथे पर लगाते हैं जिसके प्रति हमारी पूर्ण श्रद्धा और समर्पण की भावना होती है। उसे माथे पर लगाया जाता है, तो माथे पर लगाने के लिए हम चन्दन लगाते हैं, वो श्रद्धा का प्रतीक है। 

अक्षत: अक्षत क्या है? निरावरण है, छिलका अलग है और चावल अलग है। जो उसकी उज्ज्वलता का द्योतक है। ये अक्षत भेद विज्ञान का प्रतीक है समर्पण और श्रद्धा के बाद भेद विज्ञान से भर कर हम भगवान की पूजा करते है। 

पुष्प: पुष्प प्रेम का प्रतीक माना जाता है, किसी के प्रति प्रेम इज़हार करने के लिए पुष्प दिया जाता है। इसीलिए वेलेंटाइन डे के दिन गुलाब बहुत महँगा हो जाता है। प्रेम की अभिव्यक्ति का एक प्रतीक है पुष्प। ‘भगवन! मैं आपके प्रति समर्पण और श्रद्धा का भाव लेकर आया हूँ भेद विज्ञान से समन्वित हो कर आया हूँ और अपने प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए आपके चरणों में पुष्प अर्पित करता हूँ।’

नैवेद्य: जिनसे प्रेम होगा उनकी सेवा में कुछ तो रखेंगे ही निवेदन करने के लिए उसका द्योतक है नैवैद्य।

दीप: जो ज्ञान का प्रतीक है। अज्ञान का विनाश! मेरे भीतर ज्ञान प्रकट हो गया उस ज्ञान से संपन्न होने के नाते मैं आपकी पूजा दीप से कर रहा हूँ।

धूप: सद्गुण का प्रतीक है, भगवान की पूजा करने वाले के अन्दर अब तक अनेक सद्गुण प्रकट हो गए, जैसे धूप को अग्नि में डालने पर सुगन्ध होती है वैसे ही एक सच्चे भक्त के हृदय में सदगुण प्रकट हो गए तो सद्गुण की अभिव्यक्ति के लिए धूप अर्पित करते हैं।

फल: कोई भी कार्य करें तो उसकी सार्थकता तभी होती है जब उसका कोई फल मिले। बीज बोये और उसमें फल न लगे तो निरर्थक तो भगवान के चरणों में हम फल चढ़ाते इसलिए हैं कि हम अपनी आराधना को सफल बनाना चाहते हैं, फलवान बनाना चाहते हैं, इसलिए फल अर्पित करते हैं।

आठ द्रव्य चढाने के पीछे शायद ऐसी ही कोई भावना होगी, इसलिए यही क्रम यथोचित है।

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