चार कषायें और छह लेश्याओं में विशेष रूप से क्या अन्तर है या क्या सामंजस्य है?
कषायें अलग हैं और लेश्या अलग हैं। लेश्या किसे कहते है? “कषायानुरंजिता कायवाङ्मनोयोगप्रवृत्तिर्लेश्या” कषायें और योग की मिश्रित प्रवृत्ति का नाम लेश्या है। पर ध्यान रखिये कि अनन्तानुबन्धी कषाय के उदय में भी शुक्ल लेश्या हो सकती है और क्वचित कदाचित संज्वलन के उदय में भी कृष्ण लेश्या हो सकती है। लेश्या विशुद्धि हमारे भावों के उतार-चढ़ाव पर होती है। प्रायः कषाय की तीव्रता में अशुभ लेश्यायें ही होती है लेकिन जब कषाय मन्द हो जाए तो उस मन्द परिणाम में व्यक्ति की भाव विशुद्धि बढ़ सकती है। लेश्या की विशुद्धि का बहुत ज़्यादा महत्त्व नहीं है; गुणस्थान की विशुद्धि ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है।
लेश्या क्या क्षणिक होती है?
लेश्या अन्तर मुहूर्त में मनुष्यों और तिर्यंचों की बदलती रहती है। गुणस्थान भी पल-पल में बदलता है लेकिन लेश्या का मतलब है भाव और गुणस्थान विशुद्धि का मतलब है उद्देश्य। हमारा अभिप्राय साफ स्वच्छ हो तब हम अपनी आत्मा की उन्नति कर सकते हैं।
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