मरण के बाद जीव की पर्याय

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शंका

मरण के बाद जीव की पर्याय

समाधान

देखो ऐसा है, एक दर्शन है जिसका आजकल दिनो दिन काफी ज्यादा प्रभाव बढ़ रहा है। उनका एक सिद्धांत है शृगालोही शृगालः। जो जो है वही होगा। आप मनुष्य है तो चाहे कुछ भी करें तो मनुष्य ही बनेंगे। चाहे यह हो सकता है ऊपर नीचे हो। लेकिन जैन दर्शन कहता ऐसा नहीं। किसी योनि किसी पर्याय में किसी भी प्राणी का जन्म जात अधिकार नहीं है। जैन दर्शन की यही सबसे बड़ी विशेषता है जो संसार के साथ इतर दर्शनों से उसे एक विशिष्ट स्थान प्रदान करता है। वह यह है प्रत्येक प्राणी की समानता। हर आत्मा की सत्ता सामान है। 

अप्पा सो परमप्पा” यह जैन दर्शन का विशिष्ट उदघोष है। यह आत्मा और परमात्मा में कोई मौलिक अंतर नहीं है। अंतर यदि है तो उसके विकारों का है। जिसके अंदर विकार है वह आत्मा और जो विकारमुक्त हो वह परमात्मा। संसारी आत्मा विकारग्रस्त है इसलिए आत्मा है। और वह अपने कृत्यों के निमित्त से, जैसा कृत्य करते हैं, चाहे वह मनुष्य हो, चाहे पशु पक्षि हो, चाहे पेड़ पौधे हो, कीड़े मकोड़े हो, देव हो या नारकी, वो जैसा कृत्य करते हैं उनको वैसा परिणाम भोगना पड़ता हैं। एक मनुष्य भी कल एक कीड़ा बन सकता है और एक कीड़ा भी श्रेष्ठ इंसान बन सकता है। इस चीज़ को ध्यान में रखकर के चले।

हमारे आचार्य समन्तभद्र महाराजने एक बहुत अच्छी बात कहीं  –

श्वापिदेवोपि देवस्वा जायते धर्म कील्विषाद।

कापिनाम भवेद अन्यात सम्पद धर्मात शरीरिणाम।।

‘श्व’ याने कुत्ता, कुत्ता देव बन सकता है और देव कुत्ता बन सकता है यह धर्म का प्रताप है। धर्म के प्रभाव से कुत्ता देव बन सकता है तो पाप के परिपाक से देव भी कुत्ता बन सकता है। ठीक है ना?

अंग्रेजी से इसको ज्यादा अच्छे से समझ सकते हैं। कुत्ते को क्या बोलते हैं अंग्रेजी में? उसकी स्पेलिंग क्या है?  D O G और देव को क्या बोलते हैं? इसका स्पेलिंग क्या? G O D तो डॉग को पलट दो तो क्या होगा? क्या होगा? गॉड! और गॉड को पलट दो तो क्या होगा? जो उल्टी जिंदगी जिएगा डॉग बन जाएगा और जो सीधी जिंदगी जिएगा वह गॉड बन जाएगा। हर प्राणी के साथ ऐसी स्थितियाँ हैं। चाहे जैसा बन सकता है। यह भ्रम में मत रहना। यदि तुमने अपने कर्म को नहीं सुधारा तो तुम्हारी हर स्तर की दुर्गति हो सकती है। इसलिए इन बातों से ज्यादा प्रभावित नहीं होना चाहिए।

कई बार जब धर्म उपदेश सुनते हैं लोग, तो जो हमारे वैल्यूज हैं उनमें सब में समानता दिखती हैं। और उस समानता से प्रभावित होकर की कहते हैं ‘कितनी अच्छी बात है’। निश्चित रूप से अच्छी बात कही की हो अपनाना चाहिए। जहाँ तक ह्यूमन वैल्यूज की बात है सब धर्मों में समानता मिलेगी। लेकिन हमारा जो धर्म और दर्शन का लक्ष्य है वह केवल वैल्यूज को प्राप्त करना नहीं है। यह तो केवल मानवीयता की बात है। धर्म केवल हमें मनुष्य बनने की बात नहीं सिखाता, धर्म हमें केवल मानवता का पाठ नहीं पढ़ाता, धर्म मानवता से ऊपर उठकर भगवत्ता को प्रकट करने का रास्ता दिखाता है। 

तो मानवता से ऊपर उठकर अपनी भगवत्ता को कैसे प्रकट करें? वह तब आप समझ सकते हैं जब दर्शन की गहराई में जायेंगे। इसलिए जैन दर्शन की इस गहराई को समझिए जो प्रत्येक प्राणी की स्वतंत्र सत्ता को स्वीकार करके उसकी सर्वोच्च मुक्ति तक की उद्घोषणा करता है। तो मुक्ति आप प्राप्त कर सकते हैं उसे समझे। केवल जैन दर्शन के माध्यम से ही जाना जा सकता है अन्य से नहीं। संसार के सारे दर्शन जहाँ आकर रुकते हैं, सच्चे अर्थों में जैन आध्यात्म की शुरुआत वहाँ से होती है। इसलिए हमें इन पर भी ध्यान देने की जरूरत है। 

आज की नई पीढ़ी के लोग बहुत तेजी से इस तरह की बातों को आकर्षित होने लगे हैं। और कुछ लोग भ्रमित भी होने लगे हैं। लेकिन यह भ्रमणा अच्छी बात नहीं है। गलती उनकी भी नही, गलती हमारे समाज की है। और हमारे धर्म के प्रवर्तकों की है। जैन धर्म का तत्त्व इतना श्रेष्ठ है लेकिन उसकी ठीक ढंग से मार्केटिंग नहीं की जा सकी और सही मार्केटिंग के अभाव में दूसरे लोग अपनी बात को बहुत अच्छे तरीके से प्रस्तुत करके एक ब्रांड इमेज बनाते जा रहे हैं। जिससे आप की चीज खोते जा रही  है। आपके ही बीच के लोग उधर आकर्षित हो रहे हैं। यह बात ठीक नहीं है। 

हमें जरूरत है आज के बुद्धिजीवी वर्ग को खास कर धर्म का मर्म समझाने की कि वाकही में जैन धर्म क्या है इसे जानो। एक बार इसे जान लोगे तो तुम्हें फिर दुनिया का कोई दर्शन प्रभावित नहीं कर सकता।

मैं आपसे केवल इतना कहता हूँ कभी किसी धर्म का अनादर मत करो। किसी धर्म की श्रेष्ठता और अश्रेष्ठता की बात मत करो। लेकिन यदि तुम्हें जैन धर्म में जन्म लेने का सौभाग्य मिला है तो उसकी मौलिकता को पहचानो और उसे अपने जीवन में उतारने की कोशिश करो। 

दुनिया के ऐसे अनेक लोग जिन्होंने जैन धर्म को जाना तो उनके हृदय में जैन धर्म के प्रति जो श्रद्धा जगी वह असाधारण है। मेरे संपर्क में रीवा विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर डी.एन. वाजपाई, बहुत बड़े अर्थ शास्त्री भारत के। वह मेरे संपर्क में आए। जैन धर्म के प्रति उनके मन में अगाध श्रद्धा थी। उन्होंने रीवा विश्वविद्यालय में आग्रह पूर्वक मुझे ले जाकर के हमारा एक प्रवचन भी कराया। वो एक बार कहें कि मैंने जब से जैन धर्म और दर्शन को जाना है, मुझे लगा कि जैन धर्म से श्रेष्ठ कोई धर्म नहीं और जैन दर्शन से अच्छा कोई दर्शन नहीं। उन्होंने कहा कि मैंने ५२ दिन तक रात्रि भोजन का त्याग किया और मौन धारण किया। और मैंने समझा कि जैन जीवन शैली कितनी उत्कृष्ठ शैली है। और जैन दर्शन की मूलभूत अवधारणाएं कितनी अच्छी हैं। और उन्होंने कहा कि अब मैं तो केवल एक ही भावना भाता हूँ कि अगर कहीं पुनर्जन्म हो तो मैं अगला जन्म जैन धर्म में धारण करूँ। यह वही कह सकते हैं जो जैन धर्म को जानते हैं। कोलकाता में मेरे पास वो आए थे एक कार्यक्रम में। तब उन्होंने यह व्यक्त किया। तो मैंने उनसे कहा कि ‘बाजपाई साहब, आपको जैन  बनने के लिए अब अगला जन्म लेने की जरूरत नहीं हैं। जैन तो आप बन ही चुके हो। अब जैन बनने के लिए अगला जन्म मत लो। जिन बनने के लिए अगला जन्म लो जिससे जीवन का उद्धार हो सकें। 

तो बंधुओं यह मार्ग है। इस मार्ग को जो व्यक्ति समझता है वही अपना कल्याण कर सकता है।

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