हम लोग सामान्यत: उपवास भूखे रहने को या भोजन ग्रहण नहीं करने को मानते हैं जबकि उपवास होना चाहिए अपने क्रोध, लोभ, मोह, माया, गुस्सा त्यागने का नाम, इसके बारे में आपका मार्गदर्शन चाहिये?
कषायविषयाहार-त्यागो यत्र विधीयते।
उपवासस्तु विज्ञेय: शेषं लञ्घनकं विदु:।।
जहाँ भोजन के साथ विषय कषाय का त्याग है, वही उपवास है बाकी लंघन है। भूखे रहने का मतलब उपवास नहीं है। उपवास यानी अपने नज़दीक, उप यानि अपने समीप, अपने निकट, वास करना यानि बसना। सारे बहिर्विकल्पों से अपने आप को सीमित करके, आत्मा को आत्मा में रमाना, शुभ में रमें रहना, अशुभ विकल्पों से अपने आप को बचाना उपवास है।
इसलिए मैं कहना चाहूँगा जो भी उपवास करते हैं, जहाँ तक बने अपनी प्रवृत्तियों को कम से कम करें और जब आप संकल्प-विकल्प से बचेंगे, निश्चित रूप से आपके जीवन में आनन्द की अनुभूति होगी और वो उपवास आपके लिए कल्याणकारी बनेगें।
Namostu Gurudev
Yadi ghar ke sameep mandir na ho aur ghar par hi pooja karni ho to kaise karni chahiye?