राजा श्रेणिक ने ऐसा कौन सा कर्म बांधा था कि वे आने वाले भव में तीर्थंकर बनने वाले हैं? हमें भी ऐसा कौन सा मार्ग अपनाना चाहिए कि हम भी अगले भव में तीर्थंकर बनने की भावना भाएँ?
राजा श्रेणिक ने ऐसा कौन सा कर्म किया जिससे वह आगामी भव में तीर्थंकर बनेगा? राजा श्रेणिक भगवान महावीर का अनन्य भक्त था और उसने अपना सारा जीवन भगवान महावीर के चरणों में समर्पित कर दिया। वह राजा होने के बाद भी भगवान के चरणों का प्रबल अनुरागी था। राजा श्रेणिक ऐसा पुण्यशाली पुरुष था जिसने भगवान महावीर से ६० हजार प्रश्न पूछने का सौभाग्य प्राप्त किया। तो ऐसे राजा श्रेणिक को भगवान महावीर के सानिध्य में दर्शन-विशुद्धि की भावना जागृत हुई और उसी दर्शन-विशुद्धि के परिणाम स्वरूप राजा श्रेणिक को तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध हुआ।
हम ऐसा कौन सा कार्य करें जिससे हम भी तीर्थंकर बनें- मैं तो इतना कहता हूँ कि अभी तीर्थंकर बनने की बात मत करो। आप तो इतनी भावना भाओ कि ऐसा भाग्य जगे जिससे तीर्थंकरों के सच्चे अनुयायी बन जायें। पहले तीर्थंकरों के अनुयायी बनो तब फिर तीर्थंकर प्रकृति के बन्ध का सौभाग्य प्राप्त कर सकोगे और तीर्थंकर भगवान के सच्चे अनुयायी बनने का अवसर आज हमारे पास है। बाकी कार्य तो मरने के बाद होगा। लेकिन ये सौभाग्य आज हमारे पास है इसलिए हम इसको आज भी प्राप्त कर सकते हैं।
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