धार्मिक क्रियाएँ करते समय भाव कैसे रखें?

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शंका

पूजा करते समय कैसे भाव होने चाहिए? मन्दिर में श्री जी का अभिषेक हो रहा हो तब कोई मन्दिर में उपद्रव करे जो समाज को ठीक न लगे तो उसको कौन सी गति का बन्ध होगा?

समाधान

सबसे पहले पूजा करते समय हमारी निर्मलता, पवित्रता, अहो भाग्य का भाव होना चाहिये। अपने आप को सौभाग्यशाली मानना चाहिए कि आज मेरी यह कितनी शुभ घड़ी है, आप लोग बोलते हैं 

धन्य घड़ी यो, धन्य दिवस यो ही, धन्य जन्म मेरो भयो। 

अब भाग्य मेरो उदय आयो, दर्न प्रभु जी को लखि लयो।।

मन गद-गद हो जाए, रोम-रोम पुलकित हो जाए। ह्रदय में एक अलग प्रकार का उमंग और उत्साह का भाव हो जिसे हम एक शब्द में कहें- अहो भाव। वह अहोभाव जितना बढ़ेगा समझ लेना वही पुण्य है। पूजा के समय अगर मन में मलिलता है, अन्य प्रकार के विकार हैं, तो वह तुम्हारे पूजा-जन्य पुण्य को रोकने वाला है। इसलिए अहोभाव की विशुद्धि से अपने हृदय को भर के चलने की कोशिश करना चाहिए, चलना चाहिये। 

अब रहा सवाल पूजा के समय इस तरह के शब्द का कोई प्रयोग करता है जिससे लोगों की धार्मिक आस्था बाधित होती है या किसी का मन खराब करता है, तो ऐसा व्यक्ति वज्रलेप का भागीदार बनता है। धर्म क्षेत्र में ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए, यह भगवान की असाधना भी है, इसलिए ऐसे लोगों को सावधान रहना चाहिए। वहाँ तो अपने आपको संयत रखना चाहिए और इसीलिए तो कहते हैं कि पूजा आदि आवश्यक के काल में मौन रहो ताकि इस तरह के उपद्रव की कोई सम्भावना न हो सके।

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