रामचन्द्र जी और भरत चक्रवर्ती कैसे सम्यकदृष्टि जीव थे?

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शंका

रामचन्द्र जी और भरत चक्रवर्ती कैसे सम्यकदृष्टि जीव थे?

समाधान

सम्यक् दर्शन का मतलब होता है, श्रद्धान होना। श्रद्धान होना और बात है, आचरण होना और बात है। सम्यक् दर्शन के दो भेद हैं-सराग सम्यक् दर्शन और वीतराग सम्यक दर्शन। सराग सम्यक् दर्शन की परिणति वो परिणति होती है, जिसमें श्रद्धा तो होती है पर तदनुरूप आचरण नहीं होता। और वीतराग सम्यक् दर्शन की परिणति ऐसी परिणति होती है, जिसमें श्रद्धा और आचरण में एकरूपता होती है। रामचन्द्र जी या भरत चक्रवर्ती, गृहस्थ अवस्था में इन दोनों के जीवन में, सराग सम्यक्त्व था। श्रद्धान पक्का होने के बाद भी ये कषायों से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाए थे, राग से मुक्त नहीं हो पाये थे। ये राग ही उन्हें उद्वेलित कर रहा था।

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