भौतिक परिवेश में जैनों की अस्मिता सुरक्षित रखने के लिए हम सभी को क्या उपाय करने चाहिए?
जैनियों की अस्मिता यानि वजूद को सुरक्षित रखने के लिए सबसे पहला उपाय तो यह है कि हमें जैनत्व को सुरक्षित रखना चाहिए। जैन मात्र के अन्दर यदि जैनत्व सुरक्षित होगा तभी हम जैनों के वजूद को सुरक्षित रख पाएँगे। जैनत्व को सुरक्षित रखने का मतलब- जैन आचार और जैन विचार को अपने जीवन में उतारने का प्रयास होना चाहिए। हमारे आचार-विचार में जो विकृतियाँ उत्पन्न हो रही हैं, वे हमारी अस्मिता के लिए बहुत बड़ा संकट है, उन विकृतियों को दूर करने का प्रयास होना चाहिए।
नंबर २, हम जैनों की सुरक्षा में लगें, जैनों को संरक्षण दें और उन्हें हर स्थिति में सहयोग देकर मजबूत करने का प्रयास करें। इस क्षेत्र में संगठन, पारस्परिक सहयोग, संरक्षण और समादर की भावना को साथ लेकर चलना चाहिए। एक दूसरे को सहयोग देने की प्रवृत्ति साधर्मी वात्सल्य का एक बहुत बड़ा गुण है। अगर हर जैनी एक दूसरे को सहयोग देने लगे, हर धर्मात्मा एक दूसरे को सहयोग देने लगे तो कोई भी किसी भी स्थिति में कमजोर साबित नहीं होगा, मजबूत होगा। जब व्यक्ति मजबूत होता है तभी आगे बढ़ता है। धर्म और समाज दोनों एक दूसरे के पूरक होते हैं धर्म समाज को नियंत्रित करता है, तो समाज धर्म को पुष्ट करता है। धर्म के नियंत्रण के अभाव में समाज निरंकुश हो जाता है, तो सामाजिक संरक्षण के अभाव में धर्म आश्रयहीन हो जाता है। अतः दोनों की आवश्यकता है। सहयोग जिसे जहाँ जैसी आवश्यकता और सुरक्षा की जरूरत है।
तीसरी बात समादर- किसी का तिरस्कार नहीं! आज तिरस्कार और बहिष्कार की प्रवृत्तियाँ बढ़ रहीं हैं। हमें तिरस्कार और बहिष्कार की जगह संस्कार डालने की कोशिश करनी चाहिए। किसी का बहिष्कार न करें, हम संस्कार करके व्यक्ति को आगे बढ़ाएँ और सामाजिक संगठन एकता को मजबूती दें।
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