मरण के भय से बचने के लिए क्या उपाय करें?

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शंका

जीवन है, तो मरण भी निश्चित है। फिर भी मृत्यु से भय क्यों लगता है? इससे भयग्रस्त मनुष्य को क्या करना चाहिए?

समाधान

मरण से भय केवल उसको लगता है जिसको जीवन से ज़्यादा प्रेम होता है। जो जीवन और मरण के रहस्य को अच्छी तरीके से समझ लेगा, उसे न जीवन के प्रति बहुत ज़्यादा लगाव होगा, न मरण से भय होगा। आपने पूछा है- “मरण के भय से बचने के लिए क्या उपाय करें?” आत्मा के अमर स्वरुप को पहचानने का प्रयास करें। 

आत्मा अमर है, जनम- मरण तो अनादि से लगा हुआ है। जिस दिन हमने जन्म लिया उसी दिन मौत निश्चित हो गई और यह जो मेरा मरण होगा, यह पहली बार नहीं होगा। ऐसे अनन्त मरण मैंने अतीत में कई बार कर लिए है। और ऐसे ही अनन्त जन्म को मैंने धारण कर लिया है। मेरे आज तक के इतिहास को यदि में २ शब्दों में संग्रहित करूँ तो संसार के हर प्राणी के अनन्त काल का यही इतिहास है- जन्म और मरण! इसके अलावा क्या है? जन्म – मरण ही संसार का इतिहास है, तो ऐसी अनन्त जन्म कर लिये, अनन्त मरण कर लिए, फिर भी मैं ज्यों का त्यों रहा। इसलिए जन्म-मरण की बात से ऊपर उठकर, अपने भीतर की अजन्मे और अमर आत्मा पर दृष्टि रखें, जिनकी आत्म पर दृष्टि उद्घाटित हो जाती है उनके भीतर किसी प्रकार का भय नहीं होता। मरण से डरे नहीं, मरण को सार्थक बनाने का यत्न करें। मरण को वही सार्थक बना सकता है जिसका जीवन सार्थक होता है।

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