शंका
जब हम किसी की मृत्यु में जाते है, तो घर के बाहर ही स्नान करके प्रवेश करते है लेकिन किसी साधु की समाधि में जाते है तब क्या करना चाहिए?
समाधान
गृहस्थ और संन्यासी में अन्तर होता है। गृहस्थ के दाह कर्म को अलग तरीके से किया जाता है और साधु के दाह कर्म को अलग तरीके से किया जाता है। गृहस्थ के मरणोपरांत सबको सूतक लगता है और साधु की समाधि होने पर किसी को भी सूतक नहीं लगता। तो इसलिए दोनों को समान रूप से न जोड़ें। किसी साधु की समाधि के उपरान्त जब उनका दाह संस्कार करके आते हैं, तो स्नान करके ही घर में प्रवेश करना चाहिए, यह सामाजिक है।
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