पंचकल्याणक में भगवान के माता-पिता बनने के पहले और बाद में हमें किस प्रकार की भावना भानी चाहिये?
भगवान के माता-पिता बनने का सौभाग्य एक बहुत बड़ा सौभाग्य है, हर व्यक्ति को चाहिए कि जीवन में एक बार यह सौभाग्य पाने की भावना रखें। हर किसी को माता-पिता नहीं बनाना चाहिए। माता-पिता उन्हीं को बनाना चाहिए जिसका बैकग्राउंड धार्मिक रहा हो, संयमी रहा हो, शील सदाचार के पालन में सक्षम रहा हो, कुलाचार का दृढ़ता पूर्वक पालन करते हो और धर्म के प्रति पक्की श्रद्धा हो, अन्धविश्वासी न हो। जब माता-पिता बन जाएं तो उनके जीवन में एक शुद्ध श्रावक के गुण आने चाहिए। जो हमारा कुलाचार है उनका दृढ़ता से पालन होना चाहिए। रात्रि में भोजन-पानी आदि का त्याग करना चाहिए। अभक्ष्य भक्षण से बचना चाहिए, खान-पान में शुद्धि रखना चाहिए, व्यवहार में सरलता और विचारों में सौम्य भाव रखना चाहिए, एक अच्छा जीवन जीना चाहिए और धीरे-धीरे वैराग्य के रास्ते पर आगे बढ़ते हुए अपने कल्याण का रास्ता पकड़ना चाहिए।
माता-पिता बनने वालों को माता-पिता बन जाने के बाद आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत जरूरी है। माता-पिता बनने का भाव बहुत लोग रखते हैं और बन भी जाते हैं, कई बार बोलियों के बल पर या अन्य माध्यमों से; लेकिन बहुत सारे प्रकरण मेरे पास ऐसे हैं जो माता-पिता बन गए, बाद में उनका व्रत खंडित हो गया। जिनका अभ्यास न हो, वो कभी न बनें। अभ्यास जमाने के बाद यह व्रत अंगीकार करें, ऐसी धाराव्रत है गृहस्थ अवस्था, अच्छे-अच्छे बुड्ढों के भी नियम नहीं पलते। अपने मन को, विचार को मोड़िए, विचारों में आध्यात्मिक मोड़ लाइए तब ब्रह्मचर्य का पालन होता है। केवल संकल्प ग्रहण करने से ब्रह्मचर्य नहीं पलता, जो लोग ऐसा करते हैं बाद में अपने नियमों को तोड़ देते हैं वह महान दुःख के पात्र बनते हैं। इसलिए हमें अभ्यास बनाना चाहिए और जो नियम लिया है उसका दृढ़ता से अनुपालन करना चाहिए। हमारी जो शास्त्रीय व्यवस्थाएँ और मर्यादायें दी गई है उनको मध्य में रख करके अगर हम उनका पालन करें तो कहीं कोई कठिनाई नहीं है।
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