किसी का अन्त समय हो, तो उसे क्या सम्बोधन देना चाहिए?
किसी का अन्त समय हो तो उसको उसे आत्मा का बोध कराने की कोशिश करनी चाहिए। शरीर की आसक्ति को खत्म करने की प्रेरणा देनी चाहिए। घर-परिवार, धन-पैसे से उसके चित्त को मोड़ना चाहिए। आत्मा के प्रति, पंच परमेष्ठि के प्रति उसका अनुराग जगाना चाहिए। उन्हें समझाना चाहिए –
“अब तुम्हारे पास समय बहुत कम बचा है, जीवन की ये अन्तिम घड़ियाँ है, तुम्हारी कोई भी श्वास आखिरी साँस हो सकती है। शरीर तो विनाश धर्मा है कभी भी नष्ट हो जाएगा, इसका मोह न करें। आत्मा अमर है, अमर आत्मा के प्रति अपनी दृष्टि रखें ।” इस प्रकार के भावों से भरे सम्बोधन दें और यह समझाएँ – “ये जो तुम्हारे शरीर में प्रतिक्रियाएँ चल रही है, यह शरीर की वेदना है। आत्मा तो सब प्रकार की वेदनाओं से परे है। आत्मा का न जन्म होता है न मरण होता है, उस अजर-अमर आत्मा के स्वरूप को समझो। जिस शरीर को तुमने जीवन भर पोसा, वह शरीर भी आज तुम्हारे साथ नहीं जा पा रहा है। इसकी यह दशा जो चिता की राख में परिणत होने वाली है, तो फिर औरों की बात क्या? अब सब तुम्हारा यह परिवार, तुम्हारी यह सम्पत्ति सब धरी रह जाएगी। इसलिए इनके मोह को छोड़कर अपनी आत्मा की तरफ दृष्टि रखो, वही तुम्हारा कल्याण करेगी। सम्यक्त्व के साथ इस शरीर को छोड़ो, देह तो जाना ही है यदि तुम रोकर छोड़ोगे तो भी, और शान्त भाव से छोड़ोगे तो भी, जब दोनों स्थितियों में शरीर छूटना ही है, तो शरीर से मोह क्यों? अपने सगे-संबंधियों से मोह क्यों? अपनी धन-संपत्ति से मोह क्यों? अपनी आत्मा में रमने का भाव करो। पंच परमेष्ठी की शरण गहो!”
इस प्रकार के भावपूर्ण सम्बोधन से उसकी आत्मा को जगाने में ही उसका कल्याण है।
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