मुनि महाराज का नगर में मंगल प्रवेश करवाने में, उनको ठहराने में और विहार कराने में यदि हमसे किसी भी प्रकार की कोई त्रुटि हो जाती है, तो हमें क्या करना चाहिए?
जो करेगा उसी से तो त्रुटि होगी। जो करेगा ही नहीं तो उससे क्या त्रुटि होगी? कई बार आप इस आशा से गुरुओं को लेकर आते हैं कि एक सप्ताह तक रुकेंगे, लेकिन गुरु आए और दूसरे दिन चल दिए, तो आप लोगों को लगता है कि त्रुटि हो गई। फिर लोग, उसकी आलोचना शुरू कर देते हैं जो लेकर आता है। उसको कहा जाता है कि “तुमने ही कोई गलती कर दी होगी इसलिए महाराज चले गए, नाराज हो गए।” साधुओं के कार्यक्रम इतनी छोटी-छोटी बातों से प्रभावित नहीं होते। उनके सारे कार्यक्रम उनके हिसाब से बनते हैं और बदलते हैं। इसलिए कभी इस तरह का संकल्प-विकल्प नहीं करना। मन से अपना काम करो, खूब भक्ति भाव से करो, लेकिन एक ही वाक्य सदैव याद रखो, “उन्हीं जैसी चर्या में यह चित्त सदा अनुरक्त रहे”। यदि अनजाने में अनचाहे में कोई गलती हो जाए तो गुरुचरण पकड़ लो, “महाराज जी, हमारा इरादा तो नहीं था पर गलती हो गई, क्षमा कर देना”, बेड़ा पार हो जायेगा।
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