मनुष्य जीवन मात्र पैसा इकट्ठा करने के लिए या बढ़िया-बढ़िया खाना-पीना खाने के लिए, ऐशों-आराम की जिंदगी के लिए मिला है क्या? कहते हैं- “मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः“। इस मनुष्य जीवन से यदि हम चाहें तो नरक और तिर्यंच का द्वार भी खोल सकते हैं और चाहें तो स्वर्ग और मोक्ष की मंजिल भी पा सकते हैं। इन दोनों द्वारों के लिए कैसी-कैसी प्रवृत्ति व्यक्ति कर सकते हैं?
नल होता है न, आप लोग नल में पानी भरते हैं ना? आप नल को खोलते हैं तो पानी आता है और बंद करते हैं तो पानी रुक जाता है। तो नल को खोलने के लिए आपको क्या करना पड़ता है? उसको बाहर की तरफ निकालना होता है। और बंद करने के लिए क्या करना पड़ता है? उसको भीतर की और करना पड़ता है। नल को जैसे ही आपने भीतर की ओर किया तो पानी बंद हो गया और नल को बाहर की तरफ किया तो पानी आना चालू हो गया। बस जो व्यक्ति अपनी प्रवृत्ति को अन्तर्मुखी बना लेता है, तो वह अपने जीवन को सार्थक दिशा दे देता है और जो भीतर की ओर आता है, तो उसकी उर्जा का बहना बंद हो जाता है। और जो बहिर्मुखी प्रवृत्ति करता है उसकी जीवन की धारा व्यर्थ बह जाती है।
जो बच्चे जन्म से विकलांग और अपंग होते हैं इसमें उनके कर्मों का दोष होता है या उनके मां-बाप का और उनके कर्मों का दोष होता है तो मां-बाप को भुगतना पड़ता है और अगर मां-बाप का दोष होता है तो उन्हे यानी बच्चों को क्यों यह तकलीफ मिलती है कृपया मार्गदर्शन करें महाराज 🙏