पतिव्रता नारी का पति के प्रति व्यवहार कैसा हो?

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शंका

शास्त्रों में कहा गया है- “पहला सुख निरोगी काया, दूसरा सुख धन-संपत्ति की माया, तीसरा सुख पतिव्रता नारी……”; तो हम पत्नियाँ जिन्हें इतना बड़ा कर्तव्य दिया गया है, जाने-अनजाने हम अपने पति का दिल दुखाती हैं। 24 घंटे का साथ होता है, ग़लतियाँ हो ही जाती है। महाराज जी! क्या कोई ऐसा व्रत है, कोई नियम है जिससे हम अपने पाप का प्रायश्चित कर सकें। कृपया मार्गदर्शन कीजिए।

समाधान

यह बिल्कुल सही है कि हमारे यहाँ पतिव्रता नारी की बड़ी महिमा बताई गई है। सबसे पहली बात तो मैं ये कहूं की पतिव्रता होने का तात्पर्य अथवा पातिव्रत्य धर्म को पालने का तात्पर्य केवल यौन सदाचार ही नहीं है; उसका अर्थ स्त्री पुरुष दोनों एक दूसरे से जुड़कर, भावनात्मक रूप से एक दूसरे के पूरक और प्रेरक बने, यह सच्चा पातिव्रत्य है। यदि स्त्री-पुरुष एक दूसरे के पूरक और प्रेरक बनते हैं, तो खटपट कम होती है, जब उसमें कमियाँ होती है, तो खटपट होती है। आपने पूछा, इस खटपट की कमी को कैसे दूर किया जाए? एक ही उपाय है, जीवन के उत्तरार्ध में सन्यास को धारण कर लो, हमेशा की खटपट खत्म!

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