पण्डितों का आचरण कैसा हो जिससे जिनवाणी का बहुमान और उनका सम्मान बना रहे?

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शंका

हम सभी विद्वान एवं पण्डित पर्यूषण पर्व में प्रवचन एवं स्वाध्याय हेतु जाते हैं। कभी-कभी स्वाध्याय सभा में आए कुछ श्रावकों का आचरण हमसे भी श्रेष्ठ होता है। कई बार हमें कटाक्ष का सामना भी करना पड़ता है। ऐसे में हम लोगों का आचरण कैसा होना चाहिए जिससे जिनवाणी का बहुमान बना रहे और हमारा सम्मान भी?

समाधान

जब भी कहीं प्रवचन एवं स्वाध्याय के लिए जाएँ तो सबसे पहले यह कहना चाहिए कि “मैं पंडित-विद्वान् नहीं हूँ। मैं आपका बेटा हूँ, स्वाध्याय करता हूँ, कुछ सीख रहा हूँ। अपना एवं आपका धर्म ध्यान कराने के लिए आया हूँ। जो मैं कहता हूँ, उन पर मेरी श्रद्धा हैं और आचरण में उतारने की भावना रखता हूँ परन्तु अभी उतना साहस नहीं जुटा पा रहा हूँ, मेरे संकल्प इतने मजबूत नहीं हैं।” यदि आप यह बात कहोगे तो ये भ्रांतियाँ अपने आप खत्म हो जाएगी।

यदि आप अपने आप को पंडित की भाँति प्रतिस्थापित करोगे और पंडित की भाँति पूजवाओगे तो इस प्रकार के कटाक्ष सुनने के लिए तैयार रहना होगा।

आचरण में कम से कम अभक्ष्य और मर्यादित पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए, अनैतिक कार्य नहीं करना चाहिए और सदाचारी बनना चाहिए।

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